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________________ जैनराजतरंगिणी [१:१:५२-५३ वनमध्ये प्रविश्यैव नरकङ्कालपञ्जरम् । भित्तिस्थदीपमात्रे ते पश्यन्ति स्म सकौतुकम् ॥ ५२ ।। ५२. बन में प्रवेश करके भी उन लोगों ने कौतूहलपूर्वक एक नरकंकाल पंजर को देखा जिसके पास भीत पर दीप मात्र स्थित था। तपस्तप्त्वा चिरं प्राप्य योगसिद्धिमसौ नृपः । फणीव कञ्चुकं पूर्व गुहायामत्यजत् तनुम् ।। ५३ ।। ५३. वह नृप चिरकाल तपस्या करके योगसिद्धि प्राप्त कर, सर्प के कंचुक' के समान गुफा में शरीर त्याग कर दिया था। बरी में उल्लेख है-सुलतान ने सिन्ध और तिब्बत मिल दूर है। यहाँ की लोइयाँ तथा पटू प्रसिद्ध है। को जीता था (पृष्ठ ४३९)। एक मत है कि हिन्दूबाग ही हिन्दूबाट है । बाट का जोनराज की मृत्यु सन् १४५९ ई० में हो गयी अपभ्रंश बाडा हो गया है। बाट शब्द दक्षिण-पूर्व थी। श्रीवर ने उसके पश्चात् का इतिहास लिखा एशिया में बहुत प्रचलित है। उसका अर्थ विहार या है। यहाँ श्रीवर ने स्पष्ट लिखा है कि वे काश्मीर मठ होता है। से बाहर स्थित थे। अतएव यह विजय सन् १४५९ पाद-टिप्पणी : ई० के पश्चात् हुई होगी। इस समय जैनुल आबदीन ५२. (१) नरकंकाल पञ्जर : जोनराज ने की आयु लगभग ५८ वर्ष की थी। उसकी मृत्यु ६९ सुलतान शहाबुद्दीन के प्रसंग में सुलतान के रक्षित वर्ष की अवस्था सन १४७० ई० मे हो गयी थी। कलेवर का उल्लेख किया है । जोनराज का अनुकरण श्रीवर जैनुल आबदीन के पूर्व की विजयों का उल्लेख करता, श्रीवर ने भी कलेवर परिवर्तन की बात दूसरे करता है। उसने संवत् क्रमानुसार नहीं दिया है। शब्दों में लिखा है (जोन० : ४५४ )। आइने पहला संवत् जोनराज की मृत्यु सन् १४५९ ई० अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है कि सुलतान तथा उसके पश्चात् १४६५, १४५२, १४६०, किसी के भी शरीर में प्रवेश कर सकता था ( पृष्ठ : १४६२, १४५९, १४५७, १४३९, १४६९ ४३९ )। तथा १४७० ई० दिया है। श्लोक तथा तरंग एवं तवकाते अकबरी मे सुलतान के शरीर से घटनाक्रम के अनुसार वर्ष संवत् नही दिया गया आत्मा निकलने आदि के सम्बन्ध मे उल्लेख किया है। जोनराज ने अवश्य लिखा है कि गान्धार, मद्र, गया है। उसे योगी माना है। शरीर से आत्मा सिन्ध के राजा सुलतान के आज्ञाकारी थे। जैनुल निकालने और पुनः लौटा लाने की योगिक क्रिया आबदीन के राज्यकाल के समय सिन्ध मे जाम- को 'सीमिया' नाम दिया है। तवकाते अकबरी सिकन्दर, जाम राजदान, जाम संजर तथा जाम के लीथो संस्करण में 'जिलअपिदन' और 'सिलहवदन' निजामुद्दीन हुए थे। जामों का समय अनिश्चित है। एक पाण्डुलिपि मे दिया गया है। 'सीमिया' के परन्तु जैनुल आबदीन के प्रारम्भिक राज्यकाल में लिये 'समया', 'सीमीया' तथा लीथो संस्करण में जाम सिकन्दर के होने की अधिक सम्भावना है। हमा' दिया गया है । यही शब्द अन्य स्थान पर (२) हिन्दुबाट: हिन्दूबाड़ा स्थान सोपोर से पाण्डुलिपि में 'इल्फ सीमीया' 'सीमीया' तथा १६ मिल उत्तर स्थित है। इस समय तहसील लीथो संस्करण में 'इल्मसीमीयां' लिखा गया है। का सदर मुकाम है। अस्पताल तथा स्कूल है। पाद-टिप्पणी: श्रीनगर-टिथवाल सड़क पर है । श्रीनगर से ४६ ५३. ( १ ) कंचुक : केचुल = वस्त्र । श्रीवर ने
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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