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________________ जैनराजतरंगिणी [१:१:४५-४७ श्रीमेरठक्कुरो ज्येष्ठः प्राइविवेकपदोज्ज्वलः ।। तेषां मुसुलवृद्धोऽपि बभौ ग्रन्थगुणोज्ज्वलः ॥ ४५ ॥ ४५. ज्येष्ठ मीर ठाकुर प्राविवेक' (न्यायाधीश) पद से भूषित हुआ और ग्रन्थ गुणोज्ज्वल वृद्ध मुसुल भी प्रसिद्ध हुआ। कष्टेन काष्ठवाट स प्राप्तोऽवटपथात्ततः । हिमान्यन्यन्तरदग्धाघिहिमान्यन्तरमासदत् ॥४६ ॥ ४६. कष्ट से अवट' (गर्त-गुफा) पथ से काष्टवाट, वह हिमानी मध्य पहुँचा । हिमानी से उसका चरण क्षत हो गया। स्थित्वा माणिक्यदेवाग्रे स मद्रस्यान्तरे चिरम् । चिब्भदेशं ततः प्राप किञ्चित्प्राप्तपरिच्छदः ॥ ४७ ॥ ४७. मद्र' देश स्थित माणिक्यदेव के समक्ष बहुत दिन रहकर कुछ परिजनों को प्राप्त कर, चिब्भ देश पहुंचा। राजपूत मुसलमान लिखाते है। जोनराज ने (श्लोक पाद-टिप्पणी: ६८८, ७१६, ७१७), शुक (१ : ५२) तथा श्रीवर हिमान्यन्त' का पाठ द्वितीय पद के द्वितीयचरण ने ( ३ : ४६३; ४ : १०४, ३५३, ३७८, ३७९, का सन्दिग्ध है। ४१२, ५३१) उनका उल्लेख किया है । ४६. (१) अवट पथ : श्रीदत्त ने नाम वाचक शब्द 'वट पथ' माना है (पृष्ठ १०२ )। पाद-टिप्पणी : मै श्रीनगर से होता किश्तवार गया हूँ। यह ४५. (१) प्राड्विवाक : 'न्यायाधीश', मार्ग कठिन है, इस समय सड़कों का सुधार तथा 'धर्माध्यक्ष', ( राजनीति, रत्नाकर : १८), 'धर्म- मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है, प्राचीन काल में मार्ग प्रवक्ता' (मनु० :८ २०), 'धर्माधिकारी' (मान- गर्तमय था। आज भी गर्गों से होकर मार्ग जाता सोल्लास : २ . २ श्लोक ९३ ) को प्राड्विवाक है। रामायण मे भी अवट पथ का प्रयोग इसी अर्थ कहते हैं। में किया गया है। 'अवटे चापि मे रामा प्रक्षिपेमं प्राविवाक अति प्राचीन नाम है ( गौतम० : कलेवरं, अवटेमे निधीयते ।' १३ : २६, २७, ३१; नारद . १ : ३५)। 'प्राड' (२) काष्टवाट : किश्तवार । शब्द प्रच्छ घातु में बना है। इसी प्रकार विवाक पाद-टिप्पणी : 'वाक्' से बना है। इसका अर्थक्रम से प्रश्न पूछना, पाठ बम्बई किन्तु 'मद्र' के स्थान 'मद्र' किया सत्य बोलना या सत्य का विश्लेषण करना है। गया है जो उचित है। 'प्रश्नविवाक' शब्द इसी प्रकार बना है। वह शब्द ४७. (१) मद्र : द्रष्टव्य : पाद-टिप्पणी श्लोक वाजसनेयी संहिता तथा तैत्तिरीय ब्राह्मण में प्रयुक्त ७१४. जोमराजकत तरंगिणी भाष्य : लेखक । किया गया है। (२) माणिक्यदेव : श्रीदत्त ने माणिक्यदेव (२) मुसुल : मुसलमान । का अनुवाद मणिक्यदेव स्थान किया है। माणिक्यदेव
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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