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वार वानिको परस्पर गुणे एक लक्षका वर्ग भया । १ ल १ लामहरि अंगुलनिक अर्धच्छेद उगणीस थे तिन प्रमाण दोयवार दूवानिकों परस्पर गुणें सात लाख अहसठि हजारका वर्ग भषा ७६८०००। ७६८०००। बहुरि सूच्यंगुलका अर्धच्छेद प्रमाण दोयंबार दृवानिको पास्परगुणे प्रतरांगुल भया । बहुरि छह अच्छेद इहां उपयोगी न कहिं घटाए ॥ थे तिन प्रमाण दोश्वार वानिकी पासर गुणें चौसाठिका वर्ग होइ । बहुरि जगच्छृणीका अर्धछेदस्यों तीन घटाएं राजूके अर्द्धच्छेद होई ऐसा कहि घटाए थे। तिन प्रमाण दोयबार दूवानिकों माण्डि परस्पर गुणें सातका वर्ग भया । ऐसें ॥ सर्व अर्द्धन्छेद घटाए थे तिन प्रमाण दोयवार दोयका अंक मांडि परस्पर गुण जो जो प्रमाणभया ताका भागहार जाननां । जात-" विरलिज्जमाणरासि ने त्तियमेवाणि हीणरूवाणि। तेसिं अण्णोण्णहदी हारो अण्ण रासिस्म " ऐसा करणसूत्र पूर्व कहि आए हैं । ऐसें गछप्रमाण गुणकारका परस्परगुणनां भया। ____बहुरि यामें एक घटाइए ताकी सहनानी ऐसी बहुरि याको एक घाटि गुणकार तीन ताका भाग दीजिए । बहुरि मुखका प्रमाण चौसाठ गुणां एकसौ छिहत्तरि तीहकरि गुणिए तव धनराशिका जोडदिए जगत्मतरकों चौसठिगुणां एकसौ छिहत्तरिकरि गुणिए अर ताको प्रतरांगुलको सातलाख अडसठि हजारका वर्ग अर लाखका वर्ग मर चौसठिकां वर्ग भर सातका वर्ग र तीनकरि गुणि ताका भाग दीजिए तामें एक घटाइए इतना संकलित धन=१७६६४ हो है। . : . इहां जगत्पतरकी सहनानी ऐसी-प्रतरांगुल की. ऐसी ४ ४ । ७६८००० । ७६८००० । १ ल । १ ल । ६४।.६४।७।७। ३ । जाननां । नहुरि ऋणराशिका संकलित धनल्याइए तहां गुणाकारका प्रमाण दोय है तात पूर्वोक्त गच्छका जितनां प्रमाण तितना दुवा मांडि परस्पर गुणिएं । तहाँ