________________
( ४७ )
अर्थ- सिंह हाथी वृषभ जटिलरूप कारकों धारि देव हैं ते विमाननिकों पूर्वादि दिशानि प्रति वर्द्धति कहिये लेह चालें हैं । ते देव चंद्रमा अर सूर्य इनके तौ प्रत्येक सोलह हजार हैं । बहुरि इतर तीन आधे आधे हैं तां ग्रहनिके आठ हजार नक्षत्रनिके च्यारि हजार तारा निके दो हजार विमानवाहक देव जानने || ३४३ ॥
आगे आकाश विर्षे गमन करतें ने केह नक्षत्र तिनके दिशाभेद कहे हैं !
उत्तरदक्षिण उड्दाघोमझे अभिजि मूल सादी य ॥ भरणी वित्तिय रिक्खा चरंति अवराणमेव तु ॥ ३४४ ॥ उत्तरदक्षिणोर्ध्वाधोमध्ये अभिजिन्मूलः स्वातिश्व || भरणी कृत्तिका ऋक्षाणि चरंति अवराणामेवं तु ॥ ३४४॥
अर्थ - उत्तर १ दक्षिण १ ऊर्ध्व १ अधः १ मध्यः १ इन विषै क्रमतें अभिजित १ मूल १ स्वाति १ भरणी ' कृत्तिका ए पंच नक्षत्र गमन करें हैं | अवराणं कहिए क्षेत्रांत कौं प्राप्त भए जे अभिजित आदि पंच नक्षत्र तिनकी ऐसी व्यवस्थिति है ॥ ३४४ ॥ आगें मेरुगिरितें कितने दूर कैसे गमन करें हैं
1
विसेयारसय विहाय मेरुं चरंति जोड़गणा || चंदतियं वज्जित्ता सेसा हू चरन्ति एकपड़े || ३४५ ॥ एक विशैकादशशतानि विहाय मेरुं चरंति ज्योतिर्गणाः ॥ चंद्रत्रयं वर्जयित्वा शेषा हि चरति एकपथे ॥ ३४५ ॥ अर्थ - इकईस अधिक ग्यारह योजन मेरुको छोडि ज्योतिषी -समूह गमन करे हैं । भावार्थ : मेरुगिरि ग्यारहसे इकड्स योजन ऊपरे ज्योतिषी मेरुकी प्रदक्षिणारूप गमन करें हैं। मेरुतैं ग्यारह से इकईस योजन पर्यंत कोक ज्योतिपी न पाइए हैं । बहुरि चंद्रमा सूर्य ग्रह इन तीन
Sams