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अर्थ - निवै अधिक सात से विषै उपरि दश असी च्यारि दोय स्थानविषे तीन चारि स्थानविषै नाइ क्रमतें तारा इन शशि ऋक्ष बुष शुक्र गुरु अंगार मंदगति तिष्ठ हैं । भावार्थ :--- चित्रापृथ्वीतें लगाई सात से निर्वैयोजन उपरितौ तारे हैं । बहुरि तिनतें दश योजन उपरि इन कहिए सूर्य हैं । बहुरि तिनतें असी योजन उपरि शशि कहिए चंद्रमा है । बहुरि तिन च्यारि योजन ऊपर ऋक्ष कहिए नक्षत्र हैं । बहुरि तिनतें च्यारि योजन उपरि बुध हैं । बहुरि तिनतें तीन योजन उपरि शुक्र है । बहुरि तिनतें तीन योजन ऊपरि गुरु कहिये वृहस्पति है । बहुरि निततें तीन योजन उपरि मंदगति कहिए शनैश्वर है । ऐसे ज्योतिषी तिष्ठे हैं || ३३२ ॥
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अवसेसाण गहाणं णयरीओ उवरि चित्तभूमींदो ॥ गंत्तूण बुहसणीणं विचाले होंति णिचाओ ॥ ३३३ ॥ अवशेषाणां ग्रहाणां नगर्य उपरि चित्राभूमितः || गत्वा वन्यो : विचाले भवंति नित्याः ॥ ३३३ ॥
अर्थ :- अठ्ठयासी ग्रहनिविषै अब शेष तिनकी नगरी उपरि उपरि चित्रा ममितै नाइ वुध अर शनैश्वर इन दोऊनकै वीची अंतराळ क्षेत्रविषै शाश्वती हैं ॥ ३३३ ॥
अत्थ-सणी गवस चित्तादो तारगावि तावदिए || जोइस पडलबह दससहियं जोयणाण सयं ॥ ३३४ ॥ आस्ते शनिः नवशतानि चित्रातः तारका अपि तावतः || ज्योतिष्कपटलबाहुल्यं दशसहितं योजनानां शतम् ॥ ३३४
• अर्थ - शनैश्चर चित्राभूमितें नवसै योजन उपरि आस्ते कहिए तिष्ठे है । बहुरि तारे हैं तेभी तावत कहिए नवसे योजन पर्यंत तिष्ठे हैं । सो चित्रात सात निवै योजन उपरि सो लगाए. नवसे योजन पर्यंत