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विभाग है । प्रश्न- तत ऐसो शब्द कहा निर्मित है । उतरून वार्तिकगतिमज्ज्यातिःप्रतिनिर्देशार्थं तद्वचनं ॥ १ ॥
नाच्च
टीका- गतिमतां ज्योतिषां प्रतिनिर्देशार्थं तदित्युच्यते नहि केवलगत्या नापि केवलैज्यों तभिः कालः परिच्छयते अनुपलब्धेर परिवर्तना ज्योतिः परिवर्तनलभ्यो हि कालपरिच्छेदः । कालो द्विविधो व्यावहारिको मुख्यश्च तत्र व्यावहारिकः कालविभागस्तत्कृतः । समयावलिका दिव्यख्यातः । क्रियाविशेषपरिच्छिन्नः अन्यस्य परिच्छन्नस्य परिच्छेदहेतुः मुख्योन्यो वक्षमाणरक्षणः । आह न मुख्यः कालोस्ति सूर्यादिगतव्यतारको लिंगाभावात् । अपिच कलानां समूहः कालः कलाश्च क्रियावयवाः । किंच ।
अर्थ-गतिमान ज्योतिषीनिका किया कालविभागकूं जनावनैके अर्थ तत् ' ऐसो शब्द कहिये है । अर निश्चयकरि केवल गतिकरि भी काल नहीं जानिये है । अर केवल ज्योतिपीनिकरिमी काल नहीं जनिये है अनुपलoad कि प्रत्यक्ष नहीं दाखने अर परिवर्तनत कालकी सता नहीं मालुम होय है ।
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अर्थात्-काल प्रत्यक्ष भी नहीं देखे है । अर कालका पलटना भी नहीं दीखे है । यातें ज्योतिषीनिका परिवर्तन कर ही कालको जानपन है । सो काल दोय प्रकार है कि एक व्यवहारिक है दूरा मुख्य है । तिनमें व्यवहारिक कालको 'वभाग ज्योतिपीनिकी गति करि सभ्य आवली आदि क्रिया विशेष करि जान्यूं ऐसो व्याख्यान कियो सो अन्य अज्ञात जो मुख्य काल ताके जाननेको हेतु है । पर दूसरो मुख्य काल वक्ष्यमाणलक्षण है ।। प्रश्न -सूर्य आदिकी गतितैं भिन्न मुख्य काल नहीं है । क्योंकि वाका लिंगको अभाव है यातें । अर और सुनं कि काल की निरुक्त ऐसी है कि-कलानां समूहः कालः । याको अर्थ ऐसी है कि कलाको जो समूह सो काल है । अर कलाने है ते क्रिया के अवयब है ॥ १ ॥ किंच वार्तिक