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( १.१७).
ए.माठ अवशेष जाननें । ऐसें प्रथमादिक पथनिवि आदि नक्षत्र चंद्रमाके माठ पथनिकै ऊपरि तिठे हैं ॥ ४३९ ॥. .
मागें नशत्रनिके तारानिकी संख्या दोय गाथानिकरि कहै हैं।कित्तिय पहुदिसु तारा छप्पणतियएकछत्तिछक्कचऊ ॥
दो दो पंचेकेकं चउछत्तियणवचउकचऊ ॥ १४० ॥ . कृत्तिका प्रभृतिषु ताराः षट्पंचतिस्रः एकपत्रिपट्चतु ॥
द्वे द्वे पंच एकैका चतुः पत्रिकनवचतुष्काः चतसः ॥४४०॥
अर्थ:-कृत्तका आदि नक्षत्रनिके तारे अनुक्रमकरि छह पांच तीन एक छह तीन छ। च्यारि दोय दोय पांच एक एक च्यारि छह तीन नव च्यारि च्यारि ॥ ४४०॥ .
तिय तिय पंचेक्कारहियस य दो दो कमेण बत्तीसा ॥ पंच य तिण्णि य तारा अहावीसाण रिक्खाणं ।। ४४१ ॥
तिसः तिस्रः पंचकादशाधिकशतंद्वे द्वे क्रमेण द्वात्रिंशत् ॥ '.. पंच च तिस्रः च तारा अष्टाविंशानां ऋक्षाणां ।। ४४१ ।।
मर्थः-तीन तीन पांच ग्यारह अधिक एक सौ दोय दोय बत्तीस पांच तीन ऐसे ए तारा क्रमकरि अट्ठाईस नक्षत्रनिके हैं ।। ४४१ ।। मार्गे तिन तारानिका आकार विशेषकों तीन गाथानिकरि कहैं हैं:.वीयणसअलुद्धीए मियसिरदीवे य तोरण छत्ते ॥
पम्हियगोमुत्ते विय सरजुगहन्थुप्पले दीवे ॥ ४४.२ ॥ . वीजनशकटी द्धिका मृगशिदीपे च त रणे छने ।
वल्मीकगोमूत्र अपि शरयुगहस्तात्पले दंपे ॥ ४४२ ॥ अर्थ:- 'त्रका नक्षत्रके छह तारे हैं तिनका आकार व जना दृश है। ऐसेही रोहिणी आदि नक्षत्रके तारानिका आकार. क्रमते गाडेकी