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सोई उत्तरायणवि प्रथम भावृत्ति है । बहुरि दूसरी बावृत्ति शतभिषक नक्षत्रका योग होते शुक्ल पक्षकी चौथी तिथिविष हो है ॥ ४१६ ॥
बहुरि तीसरी बादि आवृत्ति कैसे सो कहैं हैं।पडवदि किण्हे पुस्से चोत्थीमूले य किण्हतेरसिए ॥ कित्तिय रिक्खे सुके दसमीए पंचमी होदि ॥ ४१७ ॥
प्रतिपदि कृष्णे पुण्ये चतुर्थी मुले च कृष्णत्रयोदश्याम् ॥ - कृत्तिका ऋक्षे शुक्ले दशम्यां पंचमी भवति ॥४१७॥
अर्थ-कृष्ण पक्षकी पडिवातिथिवि पुष्य नक्षत्रका योग होते तीसरी आवृत्ति होहै । बहुरि चौथी आवृत्ति कृष्ण पक्षको त्रयोदशी तिथिवि मूल नक्षत्रका योग होते हो है। बहुरि शुक्ल पक्षको दशमी तिथिवि कृत्तिका नक्षत्रका योग होते पांचवी आवृत्ति हो है ॥४१७॥ कह्या अर्थको जोडै हैंताओ उत्तरअयणे पंचसु वासेसु माघमासेसु ॥ . आउट्टीओ भणिदा सूरस्सिह पुचरीहिं ॥ ४१८ ।। ताः उत्तरायणे पंचसु वर्षेषु माघमासेषु ॥ आवृत्तयः भणिताः सूर्यस्येह पूर्वसरिमिः ॥ ४१८ ॥
अर्थ-ते ए आवृत्ति उत्तरायणविर्षे पांच वर्षनिवि जे पांच माघमास होहि तिनविर्षे पूर्व आचार्यनिकरि सूर्यकी कही हैं । अब कही . जु गाथा तिनका रचनाका उद्धार करनेका विधान कहिए हैं। पांच वर्षका समुदाय सो. युग है । जाते युगके भारंभ पांच वर्ष व्यतीत भए तिथि मादि रचना जैसे पहिले युगविर्षे गी तेसै ही है । सो युगविर्षे दक्षिणायनका प्रारंभ तो पांच श्रावण मासनिविर्षे होई अर उत्तरायणका प्रारंभ पांच माघमासनिविर्षे होइ । बहुरि वीचिविर्षे दक्षिणायनविर्षे . फाल्गुन बादि मास होहैं। .