________________
( १२८ )
बहूरिराहू दक्षिणायनविषै प्रथम पुण्यका मुक्तिकालविषै अवशेष पांचसे अठाईस दिनका इकसठिवां भाग प्रमाण काल पर्यंत तौ पुण्यकी भुक्ति हो । पीछे आलेपादि उत्तराषाढ पर्यंत नक्षत्रनिकी मुक्ति क्रमतें 1 हो । तहां तीन जघन्य सात मध्य तीन उत्कृष्ट नक्षत्रनिका भुक्तिकाल कम च्यारिसे दोयका इकसठवां भाग माउसै च्यारिका इकसठियां भाग चारहसै छैका इकसठिवां भाग मात्र है । ऐसें सर्वकाल मिलि राहुके दक्षिणायनचिषै एकसौ असी दिन हो । याप्रकार नक्षत्र भूक्तिक समच्छेद करि जोडें चंद्रमा के अयन के दिन तेरह अर चवालीसका सतसठिवां भाग हो । बहुरि दोक अयन मिलाएं वर्ष के दिन सताईस इकतीसका इकसठवां भाग हो । बहूरि सूर्यकै अयन दिन एकसौ तियासी वर्ष दिन तीनसै छपासठि हो है । वहुरि राहुकै अयनदिन एक असी वर्ष दिन तीनसें साठि हो हैं ॥ ४०९ ॥ आर्गै अधिक मासका प्रतिपादन के अर्थ सूत्र कहैं हैंइगिमा से दिणवति वस्से चारह दुवस्सगेसदले || अहिओ मासो पंचयवासप्पजुगे दुमासहिया ॥ ४१० ॥ . एकस्मिन् मासे दिनवृद्धि वर्षे द्वादश द्विवर्षके सदले ॥ अधिक मासः पंचवर्षात्मकयुगे द्विमासो अधिकौ ॥ ४१० ॥ अर्थ:- एक मासविपैं एक दिनकी वृद्धि होइ अढाई वर्षं विषै एक मास अधिक हो | पंच वर्षका समुदाय सोई हैं स्वरूप नाका ऐसा युग तिहविषै बारह दिन बर्षे तो अढाई वर्षविषै कितने दिन बधै ऐसें किएं लब्धराशि तीस दिन होइ । ऐसें ही युगविषै भी त्रैराशिक करना ।
भावार्थ:-- एक वर्षके वारह मास एक मासके तीस दिन तहां इकसठिवें दिन एक तिथि घटे तातै वर्षके तीनस चौवन दिन होइ । मर सूर्यके वीनसै छासठि दिन है । सो बारह दिन एक वर्षविष