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जातें लगताः दुसरीधार तहां उदय न हो है तातै चंद्रमाका' उत्तरायणविर्षे नव समुद्रविर्षे पांच द्वीपविर्षे ऐसे चौदह उदय जानने वहुरि इहां सूर्य व चंद्रमाका उत्तरायणवि. उदयका विभाग मूलसूत्र कानै कह्या । तथापि दक्षिणायनका उदयमार्गकरि टीकाकार विचार करि कया
अब हक्षिण उत्तर उर्व अध विर्षे सूर्यके भातापका क्षेत्र विभाग कहे हैं
मन्दरगिरिमझादो जावय लवणुवहि छहभागो दु॥ हेठा अहरससया उवरि सयजोयणा ताओ ॥ ३९७ ॥ मंदरगिरिमध्यात यावत् लवणोदधि षष्ठमागस्तु ॥ अधस्तनो अष्टदशशतानि उपरि शतयोजनानि तापः॥३९७/
अर्थ:--मेरुगिरिके मध्यतै लगाय यावत् लवण समुद्रका छठा भाग पर्यंत सूर्यका आतार फलै है । ताका उदाहरण अभ्यंतर वीथी विक् तिष्ठता सूर्यकी अपेक्षा कहिए हैं। जंबू द्वीपका आधा क्षेत्र पचास हजार योननं तामैं द्वीप चार क्षेत्र एकसो अस्सी घटाएं गुणचास हजार आठसै वीस योजन प्रमाण तो मेरुगिरिके मध्य लगाय अभ्यंतर वीथी पर्यंत उत्तर दिशाविर्षे आताप फल है । बहुरि लवण समुद्रका व्यास दोय लाख योजन ताका छठा भाग तेत्तीस हजार तीनसै तेत स योजन अर एकका तीसरा भाग प्रमाण यामैं द्वीर चार क्षेत्र एक सौ अस्सी योजन मिलाएं तेतीस हजार पांचसै तेरह योजन अर एकका तीसरा भाग प्रमाण अभ्यंतर वीथीत लगाय लवण समुद्रका छठा भाग . पर्यंत दक्षिण दिशा विरे आताप फैले है । बहुरि ऐसे ही अन्य वीथीनिविर्षे भी जाननां । बहुरि सूर्य विवते नीचे अठारहसै योजन पर्यत अधः दिशाविर्षे. आताप फैले है।