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अठारहवां अंतरालकै आगे एकसौ उगणीसवां पथव्यास है अवशेष सत्तरि योजनका इकसठवां भाग प्रमाण क्षेत्र रहे है । बहुरि वेदिकाका चार क्षेत्र विषै बावन योजनका इकसठवां भाग ग्रहि तामै मिलाएं समुद्र वेदिकाकी संधिविषै एकसौं उगणीसवां अंतराल हो है, ताके आगे एकसौ वीसवां पथव्यास है ।
a gaat areai अंतराल है ताकै आगे बाईस योजनका इकसठिवां भाग प्रमाण क्षेत्र अवशेष रहे हैं । बहुरि द्वीपचार क्षेत्रविपैं छवीस योजनका इकसठवां भाग ग्रहि तामें मिलाएं एकसौ इकईसवां पथव्यास हो । तार्के आगे एक्सौ इकसवां अंतर है ऐसें कमतें अंतर्विषै एकसौ तियासीवां अंतरके आगे एकसौ चौरासीवां पथव्यास है तहां एकसौ चौरासी पथवास प्रमाण उदयनिविपैं वाह्य वीथीका उदय पूर्वदक्षिणायणविषै गिनिए हैं । पर लगता तहां उदय न होई ता समुद्रका आदि उदय घटाए उत्तरायणविषै सूर्यके उदय एकसौ तियासी ऐसें जाननें ।
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उदयादिका स्वरूप पूर्वोक्त कहा ही था । बहुरि चंद्रमाका भी ear भेद किए विना द्वीप चार क्षेत्र १८० विषै पांच उदय भर समुद्र
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चार क्षेत्र ३३० वि दश उदय हैं मिलिकरि पंद्रह उदय हो । आगे दक्षिणायणवि कहें हैं। अथवा " रापिंडहीणे " इत्यादि पूर्वोत सूत्रकरि चंद्रमाका दिनगति क्षेत्र पंद्रह हजार पांचसे इकावन योजनका च्यारिसें सताईसर्वा भाग प्रमाण है सो इतना १५५१ क्षेत्रविषै जो एक
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उदय होय तो एक सौ अस्सी योजन प्रमाण द्वीप चार क्षेत्रवि कितने उदय होंहि ऐसें त्रैराशिक किए चारि उदय पाए ।