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________________ भावार्थ -समस्त चारक्षेत्रवि सूर्यका उदय एकसौ चौरासी होहै। तहां भरत अपेक्षा तरेसठि तौ निपर्वतविर्षे होय हरिक्षेत्रविक् एकसौ उगणीस लवण समुद्रवि उदय स्थान है । अभ्यंतर वीथीते लाय तेरसठिवीं वीयी पर्यंत वि तिष्ठता सूर्यतौ निषध पर्वतकै ऊपरि उदय होहै। भात क्षेत्रके वासीनिकरि देखिए हैं। बहुरि चौसाठि सठिवीं वीथी विष तिष्ठता सूर्य हरिक्षेत्र उपरि उदय हो । बहुरि छयासठिवीते लगाय मंत्र पर्यंत वीथीविष तिष्ठता सूर्य लावण समुद्रकै ऊपरि उदय हो । ऐसेंटी ऐरावत अपेक्षा तरेसठि नील पर्वतविर्षे दोय रम्यक क्षेत्र. विष एकसौ उगणीस लवण समुद्रवि उदयस्थान जान ॥ ३९५ ॥ भाग दक्षिणायविर्ष चार भत्रका द्वीप वदिशा समुद्रका विभागकरि उदय प्रमाणका प्ररूपणकै अर्थी राशिककी उत्पति कई हैं दीऊयहिचारखि वेदीए दिणगदीहिदे उदया । दीये चर चंदरस य लवणममुद्दम्हि दम उदया ॥ ३९६ ॥ द्वीपोदधिचारक्षेत्र पंद्यां दिनगतिहित उदयाः ॥ द्वीपे चतुः चंद्रस्य च लवणसमुद्रे दश उदयाः ॥ ३९६ ॥ अर्थ:--द्वीपगमुद संबंधी चा क्षेत्र अर वेदी इनको दिनगति प्रमाका माग दिग उदयनिता प्रमाण होहै । भावार्थ:--चार क्षेत्रका व्यासविर्षे वीथीनिवि सुर्यका जहां जहां जितने उदय पाइये है सो कहिए हैं। तहां वृ द्वीप संबंधी चार क्षेत्र एकसौ योजनमैस्यौं जंबूद्वीपकी वेदीका व्यास नार योजन है सो दुरि किए द्वीप चारक्षेत्र एकसौ छिहत्तर योजन है। बहुरि च्यारि योजन वेदी उपरि चारक्षेत्र हैं। बहुरि तीनसैं तीस योजन अठनालीस मुझसठियां माग प्रमाण लवग समुद्र ऊपरि चारक्षेत्र हैं इनको दिन गतिका प्रमाण एकसी सतरिका एकसठिवां भाग प्र
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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