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________________ - - -. .. निका गमन क्षेत्र तीन लाख पंद्रह हजार निवासी योजन हो तो एक मुहूर्तका कितना होइ । ऐसें परिधि प्रमाणकौं साठिका भाग दिएं पांच हजार दोयसौ इकावन भोजन अर गुणतीसका साठिवां भाग मात्र सूर्यका अभ्यंतर परिधिविर्षे एक मुहूर्त करि गमन क्षेत्रका प्रमाण होहै। ऐसे ही अन्य विवक्षित परिधिके प्रमाणकों साठिका भाग दिए सूर्यका विवक्षित परिधिविौं एक मुहूर्त करि गमन क्षेत्रका प्रमाण साधनां । वहुरि ऐसेही चंद्रमाका भी त्रैराशिक विधानकरि त्यावनां । तहां चंद्रमांका परिधिविष भ्रमणकी समाप्त ताका काल बासठि मुहूर्त अर तेईसका दोयसै इकईसवां भाग प्रमाण ६२।२३ २२१ याका विधान आगै "अहीसत्तरस" इत्यादि सूत्रकरि कहेंगे ॥ याको समच्छेदकरि मिलाएं तेरह हजार सातसै पच्चीसका दोयसै इकईसवां भाग मात्र भया सो इतने कालविर्षे मभ्यंतर परिधिका प्रमाण तीन लाख पंद्रह हनार निकासी योजनप्रमाण गमन क्षेत्र होइ तौ,एक मुहूर्तविय कितना होइ । प्रमाण १३७२५ फल ३१५०८९ इच्छा मु १ ऐसें करि लब्धि २२१ राशि पांचहनार तहत्तरि योजन भर सात हजार सातसै चवालीसका तेरह हजार सातसै पच्चीसवां भाग मात्र ५०७३ । ७७४४ चंद्रभाका १३७२५ अभ्यंतर परिधिवि● एक मुहुर्तका गमन क्षेत्रका प्रमाण आया । ऐसे ही अन्य विवक्षित परिधिक प्रमाणको बासठि , अर तेईसका दोयसै इकईसवां भागका भाग दिएं विवक्षित परिधिपि एक मुहतका गमन क्षेत्रका प्रमाण मावै है ।। ३८८ ॥ आणे अभ्यंतर वीथीवि तिष्ठता जु सूर्य ताका चक्षुःस्पर्शाध्वान जो दृष्टि वि भावनेका मार्ग लाको तीन गाथानिकरि मनावै है
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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