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योजन प्रमाण होइ बहुरि यामे यामें दूना दिन गतिका प्रमाण ३४० का परिधिका) प्रमाण विष्कम ३४० का वर्ग दश गुणा ११५६००० ६१ ६१/६१ ताका वर्गमूल १०७५ ल्याइ अपना भाग हारका भागदिए सतरह योजन भर योजनका अठतीस इकसठ भाग होइ सो मिलाए तीन लाख पंद्रह हजार एक सौ छह योजन अर याजनका अठतीस इकसठियां भांग प्रमाण ३१५१०६ । ३८ द्वितीय वीथीका परिधि हो है । ऐसे ही दृणा | ६१
गतिका परिधिका प्रमाण पूर्व पूर्व वीथीका परिधिविषै जोडे उत्तर उत्तर वीथीका परिधि हो है। इस प्रकार करि दिन गतिके मिलावनेते अर दूणा दिन गतिका परिधि मिलावनतें क्रमतें मेरुगिरि सूर्यके बीच अंतराल भर वीथीनिका परिधि साधिए हैं ।। ३७८ ॥
आगे ऐसे कहा जु परिधि तिहविषै भ्रमण करता सूर्य ताके दिन रात्रिको कारणपनें भर तिन दिन रात्रनिका प्रमाण मार्गनिकी अपेक्षा करि कहे हैं
सूरादोदिणरती अहारस वारसा मुहुत्ताणं ॥ अन्भन्तरम्हि एवं विचरीयं वाहिर म्हि हवे || ३७९ ॥ सूर्यात् दिनरात्री अष्टादश द्वादश मुहूर्तानाम् ॥ अभ्यन्तरे एतत् विपरीतम् बाह्ये भवेत् ।। ३७९ ॥
अर्थः - सूर्यर्तें दिन रात्र अठारह मुहूर्त प्रमाण अभ्यंतर परिधि - विष हो है । यहु ही विपरीत उलटा बाह्य परिधविषै हो है । भावार्थ:- जंबूद्वीपकी वेदीतें उरै एक्सौ अस्सी योजन जो अभ्यंतर परिधि है तिहविषे सूर्य भ्रमण करें तिह दिन अठारह मुहूर्तका तो दिन हो है । अर बारह मुहूतेकी रात्र हो है । बहुरि लवण समुद्रविषै सूर्य वि प्रमाण करि अधिक तीन दस योजन पर जो बाह्य रिति
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