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वद
खद
गद
रद
ञिविदा
पद
अदि
इदि
विदि
गिदि
नदि
चदि
त्रदि
कदि
ऋदि
लदि
क्लिदि
स्कंदरौ
शुध
उख
गाख
वख
मल
रख
लख
रखि
लखि
इखि
ईखि
वल्ग
रगि
६३
स्थैर्ये
हिंसायां च
व्यक्तायां वाचि
विलेखने
अव्यक्ते शब्दे
गतियाचनयोः
शब्दे
हिंसायाम् कुत्सिते शब्दे
दशने
बन्धने
परमैश्वर्ये
अवयवे
कुत्सने
समृद्धौ
दीघ
लीघ
शिधि
ग्रो
राखु
लाख
श्राह्नानरोदनयोः द्रा
दीतिह्लादनयोः
चेष्टायाम्
परिदेवने
गतिशोषणयोः
शुद्धौ
लगि
अगि
तगि
वगि
मगि
स्वगि
इगि
रिगि
लिगि
त्वगि
गती
भ्राखु
शाख
लाख
फक
तक
कक्क
गग्घ
तकि
वक
लघ
लज
लजि
तर्ज
लज
लाजि
जज
जजि
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जैनेन्द्रधुपाठः
गत
कम्पने च
वर्जने
पालने
शोषणे
नाणे
शोषणालमर्थयोः
व्याप्तौ
नीचैर्गतौ
हसने
कृच्छ्रजीवने
भर्त्सने
भर्जने
युद्ध
तुज
तुजि पिजि
གླ ཝཱ ཡྻཾ ཡཾ ཡྻཾ, ཡྻཾ རྀd ཪྻཞཱལཡ།ལྤ་ ླ་ལ་གཡྻཾ, ཡྻཾཡཾ, ཡཾ ཝཱ, ཝཱ ཝཿ སྠཽ ནྲྀ ཨཱཿ
गज
गुजि
गृज
गुजि
मृज
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रुज
चीज
गर्ज
गज
त्यजौ
शुच
कुच
कंच
अंच
वंचु
चंचु
तंचु
त्वं चु
मंच
मुचु
ग्लुचु
ग्रुचु
ग्लुचु
पंच
ध्वजि
धृज
वृजि
वज
व्रजि
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हिंसने
पालने च
शब्दे
मदने च त्यागे
पाके
उच्चैः शब्दे कौटिल्याल्पीभावयोः
अपनयने गतिपूजनयोः
गतौ
गतौ
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