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________________ ६२ ] जैन-तत्व प्रकाश कुमार्ग पर चलने वालों को और खोटा उपदेश देकर दूसरों को कुमार्ग पर चलाने वालों को धधकते हुए लाल-लाल अंगारों पर चलाया जाता है । जो लोग जानवरों और मनुष्यों पर उनकी शक्ति से अधिक भार लादते हैं, उनसे कङ्कर -पत्थर और काँटों से युक्त रास्ते में लाखों टन वजन वाली गाड़ी खिंचवाई जाती है । ऊपर से तीखी आर वाले चाबुकों के प्रहार किये जाते हैं । परमाधामी कहते हैं— निर्दय कहीं के ! तुझे मूक पशुओं पर दया नहीं आई, उसका फल भुगत ! जो दूसरों पर दया नहीं दिखलाता उस पर कौन दया करेगा ! कूप, तालाब, नदी आदि के पानी में मस्ती करने वालों को, बिना छाना पानी काम में लाने वालों को और वृथा पानी बहाने वालों को वैतरणी नदी के उष्ण, खारे पानी में डाल कर उनके शरीर को छिन्न-भिन्न कर डालते हैं । साँप, बिच्छू, पशु, पक्षी आदि प्राणियों की हिंसा करने के शौकीन लोगों को यमदेव साँप, बिच्छू, सिंह आदि का रूप बनाकर चीरते - फाड़ते हैं और तीक्ष्ण जहरीले दंश से उन्हें त्रास पहुँचाते हैं । वृथा वृक्षों का छेदन-भेदन करने वालों के शरीर का छेदन-भेदन करते हैं। माता-पिता आदि वृद्ध और उपकारी जनों को जो सन्ताप देते हैं, उनका हृदय भाले से भेदा जाता है, दगाबाजी करने वालों को ऊँचे पहाड़ से पटका जाता है । श्रोत्रेन्द्रिय को प्रिय राग-रागिनी के अत्यन्त शौकीन कान में उबलता हुआ शीशा भर दिया जाता है । चचुरिन्द्रिय से दुर्भा - वना के साथ परस्त्री का अवलोकन करने वालों की और ख्याल - तमाशे देखने वालों की आँखें शूल से फोड़ी जाती हैं। घ्राणेन्द्रिय के विषय में अत्यन्त आसक्त पुरुष को राई - मिर्च आदि का अत्यन्त तीखा धुआँ सुँधाया जाता है । जिह्वा से चुगली, निन्दा आदि करने वाले के मुँह में कटार भरी जाती हैं। किसी-किसी पापी को घानी में पीलते हैं, अंगारों में पकाते हैं और महावायु में उड़ाते हैं । इस प्रकार पूर्व जन्म में किये हुए कुकृत्यों के अनुसार अनेक प्रकार के घोर अतिघोर दुःखों से दुःखित करते हैं ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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