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________________ ८०२ ] ® जैन-तत्त्व प्रकाश (8) प्रेष्यारम्भत्यागप्रतिमा--नौ महीने पर्यन्त, सम्यक्त्व, व्रत, सामायिक, पौषध, नियम, ब्रह्मचर्य, सचित्तत्याग और स्वयंकृत आरम्भ त्याग के साथ छहों कायों का प्रारम्भ दूसरे से कराने का भी त्याग करे । नौ-नौ उपवासों के बाद पारणा करे। (१०) उद्दिष्टत्यागप्रतिमा-दस महीने तक, सम्यक्त्व, व्रत, सामायिक, पौषध, नियम, ब्रह्मचर्य, सचित्तत्याग, आरम्भत्याग, प्रेष्यारम्भत्याग के साथ-साथ उद्दिष्ट वस्तुओं का भी त्याग करे । अर्थात् अपने निमित्त बनाये हुए आहार आदि समस्त पदार्थ भोगने का त्याग करे। दस-दस उपवास के बाद पारणा करे। (११) श्रमणभूतप्रतिमा-सम्यक्त्व आदि पूर्वोक्त दशों बोलों का पालन करते हुए, ग्यारह मास तक, साधु के समान आचरण करे, तीन करण तीन योग से सावध कार्य का त्याग करे, सिर के, दाढ़ी के तथा मूछों के बालों का लोच करे, शिखा रक्खे, शक्ति न हो तो क्षौर करा ले, रजोहरण की डंडी पर वस्त्र न लपेटे-खुली डंडी का रजोहरण रक्खे, धातु के पात्र रक्खे । अपनी जाति में भिक्षावृत्ति करके ४२ दोषों से रहित आहार-पानी प्रादि आवश्यक वस्तुएँ ग्रहण करे । कदाचित् कोई भ्रमवश उसे साधु समझ ले तो स्पष्ट शब्दों में कह दे कि-"मैं प्रतिमाधारी श्रावक हूँ, साधु नहीं हूँ।' भिक्षा के आहार-पानी आदि को उपाश्रय आदि में लाकर गृद्धिरहित होकर भोने । ग्यारह-ग्यारह उपवास के पारणा करे । इस प्रकार ग्यारह प्रतिमाओं के पालने में ५॥ वर्ष लगते हैं। इसके पश्चात् साधु-दीक्षा धारण कर लेनी चाहिए । कदाचित् शरीर अधिक निर्बल हो गया हो और आयु का अन्त सन्निकट ही आ गया प्रतीत हो और जीवित रहने की आशा न रही हो तो संलेखना करके समाधिपूर्वक ही शरीर का त्याग करना चाहिए। . इस प्रकार श्रावक तीन प्रकार के हैं-(१) सम्यक्त्वमारी जघन्यश्रावक हैं, (२) बारह व्रतधारी मध्यम श्रावक हैं और (३) प्रतिमाधारी उत्कृष्ट श्रावक होते हैं।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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