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________________ ® सागारधर्म-श्रावकाचार 8 [८०१ (२) व्रतप्रतिमा (वयपडिमा)-दो महीने पर्यन्त सम्यक्त्वपूर्वक बारह ब्रतों का निर्मल-निरतिचार रूप से पालन करे। किसी भी अतिचार का सेवन न करे और बेले-बेले पारणा करे। (३) सामायिक प्रतिमा (सामाइयपडिमा)-तीन महीने तक सम्यक्त्व और व्रतपूर्वक प्रातः मध्याह्न और सायंकाल बत्तीस दोषों से रहित सामायिक करे और तेले-तेले का पारणा करे । (४) पौषधप्रतिमा (पोसहपडिमा)-चार मास पर्यन्त, सम्यक्त्व, व्रत, और सामायिकपूर्वक, पौषध के पूर्वोक्त १८ दोषों से बच कर प्रतिमास छह पौषधोपवास करे । चौले-चौले पारणा करे । (५) नियम प्रतिमा-पाँच महीने पर्यन्त, सम्यक्त्व, व्रत, सामायिक और पौषधोपवासपूर्वक पाँच प्रकार के नियमों का समाचरण करे। पाँच नियम यह हैं-(१) बड़ा स्नान न करना (२) क्षौर (हजामत) न करना (३) पैरों में जूता आदि न पहनना (४) धोती की एक लांग खुली रखना (५) दिन में ब्रह्मचर्य का पालन करना । पंचोले-पंचोले पारणा करे । (६) ब्रह्मचर्यप्रतिमा–छह महीना तक, सम्यक्त्व, व्रत, सामायिक, पौषध और नियमपूर्वक नव वाड़ों से युक्त अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करना और छह-छह उपवासों का पारणा करना । (७) सचित्तत्यागप्रतिमा-सात मास तक, सम्यक्त्व, व्रत, सामायिक, पौषध, नियम और ब्रह्मचर्य के साथ, सब प्रकार की सचित्त वस्तुओं के उपभोग-परिभोग का परित्याग करे और सात-सात उपवास का पारणा करे । (८) प्रारम्भत्यागप्रतिमा-आठ मास तक, सम्यक्त्व, व्रत, सामायिक, पौषध, नियम, ब्रह्मचर्य और सचित्तत्याग के साथ पृथ्वीकाय आदि छहों कायों का स्वयं प्रारम्भ करने का त्याग करे और आठ-आठ उपवासों का पारणा करे।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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