SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 837
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पौषध के १८ दोष (१-६) पौषव्रत में चौर (हजामत) तथा मज्जन (स्नान ) नहीं करना है, मैथुनसेवन नहीं करना है, श्राहार नहीं करना है, वस्त्र नहीं धोना है, जेवर नहीं पहनना है, वस्त्र आदि नहीं रँगना है, अतएव पौषध के पहले दिन यह काम कर लूँ, इस विचार से यह छह कार्य करे तो दोष लगता है। (७) पौषध में व्रती को सत्कार देना, आसन देना, वैयावृत्य करना । (८) शरीर का श्रृङ्गार करना - - जैसे सिर के बाल सँवारना, दाढ़ी-मूँछ सँवारना, धोती की पटली जमाना आदि । ( 8 ) खुद के या दूसरे के शरीर का मैल उतारना । (१०) दिन में निद्रा लेना या रात्रि में दो पहर से अधिक निद्रा लेना, (११) पूँजणी से पूँजे विनाखाज खुजलाना । (१२) विकथाएँ करना । (१३) चुगली निन्दा हँसी-मजाक आदि करना, (१४) व्यापार सम्बन्धी, हिसाब सम्बन्धी बातें करना या गप्पें मारना, (१५) अपने शरीर को या स्त्री आदि के शरीर को रागमय दृष्टि से देखना, (१६) गोत्र, जाति, नाते आदि मिलाना, जैसे आप हमारे गोत्र के हैं, आप हमारे अमुक रिश्तेदार हैं। यदि कहना । (१७) खुले मुंह बोलने वाले तथा सचित्त वस्तु जिसके पास हो, उनसे वार्तालाप करना । (१८) रुदन करना, शोक-सन्ताप करना । पौषधवत का आचरण करने वाले श्रावक को इन अठारह दोषों से बचना चाहिए, तभी निर्दोष व्रत की आराधना होती है। पौषध के पाँच अतिचार (१) अप्पडिले हिय दुष्प डिलेहिय सेज्जा संथारए – अर्थात् जिस स्थान पर पौषधवत किया हो, उस स्थान को, ओढ़ने- बिछाने के वस्त्रों को तथा पाट पराल आदि को सूक्ष्म दृष्टि से पूरी तरह देखे बिना काम में लेवे तथा हलन चलन करते, शयनासन करते, गमनागमन करते समय भूमि या विछौने
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy