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________________ ® सागारधर्म-श्रावकाचार ॐ [७६१ निश्चय सामायिक की प्राप्ति के उद्देश्य से व्यवहार सामायिक की जाती है । व्यवहार सामायिक करते समय संसार के सब पदार्थों से निवृत्तिभाव धारण करे, मिट्टी, पानी, अग्नि, पुष्पफल, धान्य, वनस्पति आदि सचित्त (सजीव) वस्तुओं से अलग रहे, पौषधशाला, उपाश्रय, स्थानक आदि एकान्त स्थान में, पगड़ी, अंगरखी, आभूषण* प्रादि गार्हस्थ्य-वेष का त्याग कर दे, पहनने-ओढ़ने के वस्त्र में कोई दाना या जीव-जन्तु न रहने पावे, इस उद्देश्य से उनकी प्रतिलेखना करे, प्रासुक ( जीव-जन्तु से रहित) भूमि को रजोहरण या पूँजणी से प्रमार्जन करके, एक पुट आसन (ऊनी या सूती) विछा कर, आठ पुट वस्त्र की मुखवत्रिका का प्रतिलेखन करके उसे मुंह पर बाँधे,+ इसके पश्चात् साधु या साध्वी हों तो उन्हें नमस्कार कर सामायिक ग्रहण करने की आज्ञा लेवे। अगर साधु-साध्वी न हों तो पूर्व तथा उत्तर दिशा की तरफ मुख रख खड़ा हो । फिर नमस्कार मन्त्र का उच्चारण करके, तिक्खुत्तो के पाठ से नमस्कार करे । नमस्कार मन्त्र और तिक्खुत्तो के पाठ इस प्रकार हैं: (नमस्कार मन्त्र) नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं नमों पायरियाणं । नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं ।। अर्थ-अर्हन्तों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो, लोक में स्थित सब साधुओं को नमस्कार हो। अर्थात् जो पुरुष त्रस और स्थावर रूप सभी जीवों पर समभाव धारण करता है उसी की सामायिक शुद्ध होती है, ऐसा केवली भगवान् ने कहा है। * उपासकदशांग सूत्र के छठे अध्ययन में वर्णन है कि कुण्डकोलिक श्रावक ने जब सामायिक ली तो अपने नाम वाली अंगूठी भी उतार दी थी, इससे जाना जाता है कि सामायिक के समय शरीर पर कोई भी आभूषण नहीं रहना चाहिए । ___ + मुखपत्ती के विना सामायिक करने पर ग्यारह सामायिकों का प्रायश्चित्त भाता है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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