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________________ ७५६ ] जैन-तत्व प्रकाश करो, पुराना घर गिरा दो, नया घर बनवा लो, लीपो, छाओ, रंगो, आहार बनामो, पानी लाओ आदि-आदि । इस प्रकार निरर्थक हिंसाकारी वचन बोलने से, वृथा ही पाप को उसेजना देने से पाप का भागी बनना पड़ता है। इसरा ऐसे काम करता है तो अपने प्रयोजन से करता है, किन्तु उसकी सराहना या उसके लिए उत्तेजना करने वाले के हाथ कुछ नहीं आता ! व्यर्थ ही प्रात्मा पर कर्मों का बोझ बढ़ता है। इसी प्रकार तलवार, बंदूक, आग आदि हिंसा के उपकरण दूसरों को देने से भी वृथा पाप-कर्म का बंध होता है । (४) पापकर्मोपदेश-पाप-कर्म का उपदेश देना। जैसे-खटमल, मच्छर, सॉप, बिच्छू आदि क्षुद्र जानवरों को मारने के लिए उपदेश देना, रुद्राणी या भैरव आदि देवों को भैंसा, बकरा, मुर्गा आदि जीवों का भोग देने की सलाह देना, ऋतुदान में धर्म बतलाना आदि । इसी प्रकार लड़ाईझगड़े का, दूसरों को फंसाने का, झूठा मुकदमा चलाने का, झूठी गवाही देने का, विषयभोग करने के चौरासी आसनों का, चोरी करने का उपदेश देना भी पापकर्मोपदेश है। ऐसा उपदेश देने वाले के उपदेश को सुनकर मनुष्य जिस पापकर्म में प्रवृत्ति करता है, उस पापकर्म का भागी उपदेशदाता भी होता है । मिथ्याधर्म-कर्म की वृद्धि होने से अनेकों की आत्मा का अहित होगा । और उपदेश देने वाले को कुछ भी लाभ नहीं होगा ! अतएव ऐसे दखसेमानी प्रात्मा को दण्डित करना श्रावक के लिए उचित नहीं है । मतः दो करण तीन योग से अनर्थदण्ड का त्याग करके इस व्रत को पहले व्रत के समान अंगीकार करना चाहिए। आठवें व्रत के पाँच अतिचार (१) कंदप्पे (कन्दर्प) अर्थात् कामोत्पादक कथा करना, जैसे-त्रियों के सन्मुख पुरुष के और पुरुष के सन्मुख स्त्री के हावभाव, विलास, खानपान अंगार, भोगोपभोग, गमनागमन, हँसी-विनोद, गुप्त अंगोपांगों का बन
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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