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________________ ॐ सागारधर्म-श्रावकाचार ॐ [७३१ पाँचवें व्रत के अतिचार (१) खेत्तवत्थुपरिमाणातिक्रम-क्षेत्र (खेत) और वास्तु (घर) के किये हुए परिमाण का आंशिक रूप से उल्लंघन करने पर यह अतिचार लगता है। जैसे मर्यादा करते समय एक खेत रक्खा हो और दूसरा खेत आ जाय तो पहले खेत की मेंड़ (पाल) तोड़ कर दूसरे खेत को उसमें मिला ले । इसी प्रकार पहले के घर की दीवाल तोड़ कर दूसरे घर को उसमें मिला ले और दोनों को एक बना ले तो अतिचार लगता है । अतएव परिमाण करते समय लम्बाई-चौड़ाई का भी परिमाण कर लेना चाहिए। कदाचित् दूसरा घर अपने अधिकार में आ जाय तो उसे धर्मार्थ समर्पित कर देना उचित है । (२) हिरण्य-सुवर्ण परिमाणातिक्रम-चांदी, सोना के परिमाण का उन्लंघन करे तो अतिचार लगता है। मर्यादा से अधिक चांदी, सोना आ जाय तो उसे पहले के ढेले में, लगड़ी में या आभूषण में मिलवा ले, आप कमाई करके पुत्र आदि को सौंप दे तो अतिचार लगता है । यदि कदाचित् मर्यादा से अधिक अचानक लाभ हो जाय तो धर्मार्थ दान कर देना चाहिए। (३) धन-धान्यपरिमाणातिक्रम-नकद द्रव्य का, जवाहरात का एवं धान्य का जो परिमाण किया है, उससे अधिक रक्खे या आप उपार्जन करके पुत्र आदि को दे तो अतिचार लगता है। क्योंकि व्रत ग्रहण करने का उद्देश्य तो इच्छा को सीमित करना और प्रारंभ को घटाना है, परन्तु ऐसा करने से वह पूरा नहीं होता । स्वयं व्यापार करके द्रव्योपार्जन करे और पुत्र आदि की मालिकी का बतला कर आप सन्तोषी बनना चाहे तो ऐसा करना मायाचार है । केवलज्ञानी से भावना छिपी नहीं रहती । अतएव जो मर्यादा की है उसे अपनी यात्मा की साक्षी से और सर्वज्ञ भगवान् की साक्षी से पालन करना चाहिए । कदाचित् अधिक द्रव्य हो जाय तो उसे धर्मार्थ समर्पित कर देना चाहिए।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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