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________________ ७२८ ] * जैन-तत्व प्रकाश * मत amaniamil माणिक, मोती श्रादि जवाहिरात की कीमत की तथा गिनती की मर्यादा करे, अधिक रखने का प्रत्याख्यान करे । पृथ्वी खुदवा कर, पत्थर चिरवा कर जवाहिरात निकलवाने का तथा सीपों को चिरवा कर मोती निकालने का काम न करे, क्योंकि इससे त्रस जीवों का भी घात होता है । सीप तो त्रस (द्वीन्द्रिय) प्राणी ही है । उनको चीरने से लाल रंग का रक्त जैसा पानी निकलता है । श्रावक को ऐसा कृत्य करना उचित नहीं है। उसे अपनी आवश्यकताएँ कम से कम करते जाना चाहिए, जिससे अल्प से अल्प आरम्भ में ही उसका काम चल जाय । कदाचित् काम न चले तो भी सीप चिरवाने का काम तो कदापि नहीं करना चाहिए और जवाहरात निकालने की मर्यादा करके उससे अधिक का प्रत्याख्यान करना चाहिए । (६) धान्ययथापरिमाण ----धान्य अर्थात् अनाज (गल्ले) का परिमाण करे । जैसे-शालि (चावल), गेहुँ ज्वार. मोंठ, मक्का, बाजरा, मूंग, उड़द, आदि चौबीस प्रकार का धान्य और धान्य के समान ही राजगिरा खसखस, आदि हैं । धान्य में मेवा, मिठाई, पकवान, घृत, गुड़, शक्कर, करियाणा, नमक, तेल आदि अनेक वस्तुएं भी सम्मिलित समझनी चाहिए। यह सब वस्तुएँ घर-खर्च के लिए जितनी आवश्यक हों उतनी की मर्यादा रख कर शेष का त्याग करे । सेर, मन आदि के हिसाब से इनकी मर्यादा करे । इन सब वस्तुओं को अधिक समय रखने से इनमें त्रस जीवों की उत्पत्ति हो जाती है, अतएव, इनके रखने के समय की मर्यादा करना भी आवश्यक है। अधिक समय तक इन्हें रखना उचित नहीं है। श्रावक इनका व्यापार न करे तो बहुत अच्छा, क्योंकि इनका व्यापार करने से त्रस जीवों की हिंसा होती है। इसके अतिरिक्त अनाज का व्यापारी प्रायः दुष्काल पड़ने की भावना किया करता है, क्योंकि दुष्काल पड़ने से उसे अधिक कमाई हो सकती है । इस प्रकार के श्रात-रौद्र ध्यान से चिकने कर्मों का बन्ध होता है । कदाचित् ऐसा व्यापार किये विना न चल सकता हो तो वस्तुओं के वजन का और उन्हें रखने के समय का परिमाण करे और परिमाण से अधिक वस्तु न रखे और मर्यादित समय से अधिक भी न रक्खे । मन में ऐसा
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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