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________________ ® सागारधर्म-श्रावकाचार ॐ [ ७१७ उन सब का नाश हो जाता है । इसके अतिरिक्त बल और आयु की भी क्षति होती है। गृहस्थ को सन्तान प्राप्ति के लिए स्त्रीप्रसंग करने की आवश्यकता कही जाती है, अतः निरर्थक बल-वीर्य को नष्ट नहीं करना चाहिए और अधिक से अधिक संयम का पालन करने का प्रयत्न करना चाहिए । अधिक स्त्रीसंभोग करने से पुत्र की उत्पत्ति न होने की भी संभावना रहती है । वेश्या के अधिक सन्तति नहीं होती है, इसका भी यही कारण होना चाहिए । बहुत से श्रीमंतों के यहाँ भी सन्तान का अभाव देखा जाता है, इसके अनेक कारणों में से एक कारण यह भी हो सकता है । अतएव गृहस्थों को जहाँ तक संभव हो, अपने मन को काबू में रख कर संयम का पालन करना चाहिए। चौथे व्रत के पाँच अतिचार (१) इत्तरियपरिग्गहियागमणे-अपनी विवाहिता कम उम्र की स्त्री के साथ गमन किया हो । विवाह हो जाने के पश्चात् भी जब तक स्त्री ऋतुमती न हो तब तक उसके साथ गमन करे तो अतिचार लगता है। कोई भोगलोलुप ऐसा विचार करे कि मैं ने तो परस्त्री का परित्याग किया है, किन्तु वेश्या किसी पर की स्त्री नहीं है, थोड़ा धन देकर अमुक समय तक परपुरुष से गमन न करे इस प्रकार की व्यवस्था करके वेश्या को अपनी स्त्री बना लूँ तो क्या हर्ज है ? इस तरह विचार करके कोई विषयी अर्थात्-एक बार स्त्री-प्रसंग करने से नौ लाख संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य गर्भ में उत्पन्न होते हैं। उनमें से किसी समय एक, कभी दो और कभी तीन जीव बचते हैं, बाकी के सभी जीव वहीं नष्ट हो जाते हैं। स्त्रीसम्भोग के पश्चात् बारह मुहूर्त तक योनि सचित्त रहती है, अर्थात् उसमें जीवों की उत्पत्ति और मृत्यु होती रहती है । इन बारह मुहूर्त में किसी भी गति में से मनुष्य की आयु जिसने बाँधी हो ऐसा जीव उस योनि में आकर उत्पन्न हो सकता है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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