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________________ ® सागारधर्म-श्रावकाचार बालविधवाओं का तो कुछ ठिकाना ही नहीं रहा । बालहत्या, गर्भपात, और आत्मघात जैसे भी घोरातिघोर अनर्थ हो रहे हैं। यह सब देख कर भी महाजन कहलाने वालों की अक्ल ठिकाने नहीं आई है । ऐसी स्थिति उत्पन्न करने में जो सहायक बनते हैं वे श्रावक के पद के लिए नालायक हैं ! अतः जो सच्चा श्रावक होगा वह कन्यालीक का अवश्य त्याग करेगा। _ 'कन्यालीक' शब्द उपलक्षण है, अतः 'कन्या' शब्द से समस्त द्विपदों का (दो पैर वालों का) ग्रहण हो जाता है। जैसे पहले कन्या के विषय में कहा है, उसी प्रकार वर के संबंध में भी समझ लेना चाहिए । अतएव 'वरालीक' भी त्याज्य समझना चाहिए। कितनीक वार वर भी बड़ा अन्याय करते हैं । वृद्धावस्था में पहुँच करके भी कुंवर कन्हैया बनने के लिए खिजाब से बाल काले कर लेते हैं और पत्थर के दांतों की बत्तीसी जमाते हैं। ऐसे. ऐसे ढोंग करके अपनी उम्र कम बतला कर दूसरों को फंसाते हैं । ऐसा करना श्रावक को शोभा नहीं देता। इसी प्रकार दत्तक पुत्र लेने के लिए या देने के लिए, गुमाश्ता नौकर आदि रखने के लिए उसके दुर्गुण छिपाकर सद्गुणी बतलाते हैं । इसी प्रकार अन्य द्विपदों के संबंध में भी झूठ बोला जाता है। यह सब झूठ कन्नालिए में समाविष्ट होता है । यह अनर्थकारी झूठ स्थूल ऋठ है और श्रावक को इसका त्याग अवश्य करना चाहिए। (२) गवालीक (गवालीए)-अर्थात् गौ संबंधी अलीक । चतुष्पदों में गौ श्रेष्ठ होने के कारण यहाँ गौ का ग्रहण किया है, किन्तु उससे समस्त चतुष्पदों का ग्रहण हो जाता है । तात्पर्य यह है कि किसी भी चौपाये के विषय में झूठ बोलना गवालीक कहलाता है। इसलिए गाय, भैंस, बैल, भैंसा, घोड़ा, हाथी, ऊँट, बकरा आदि पशुओं का व्यापार करना तो श्रावक के लिए अनुचित है ही, मगर कदाचित् घर संबंधी पशु को बेचने का प्रसंग श्रा जाय तो भी झूठ न बोले । अज्ञ-अविवेकी लोभी लोग औषध आदि के प्रयोग से गाय, भैंस आदि के स्तन फुलाकर, सींग आदि अवयवों को टेदा सीधा बनाकर खराब प्राकृति को अच्छी बनाने की चेष्टा करते हैं और कहते हैं कि यह गरीब है, सयानी है और दूध बहुत देती है । इत्यादि मिथ्या गुण
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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