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________________ ६६२] ® जैन-तत्व प्रकाश घर देने के लिए, धन के लोभी धनोपार्जन करने के लिए तथा इनके संबंधी और अन्यायी पंच आदि खुशामद करने की भावना से कन्या के लिए झूठ बोलते हैं। कन्या अन्धी, कानी, बहरी, लूली, लँगड़ी, कुलच्छनी, रूपहीन, बुद्धिहीन या किसी अन्य दुर्गुण से युक्त हो तो उस दुर्गुण को छिपा कर कन्या की झूठी प्रशंसा करके दूसरे को फंसा देते हैं। विवाह होने के पश्चात् जब उस कन्या के दुर्गुण प्रकट होते हैं तब उसके पति को और कुटुम्बियों को बड़ा ही पश्चात्ताप होता है, अनेक प्रकार के झगड़े खड़े हो जाते हैं। संताप और क्लेश के कारण दम्पती (पति-पत्नी) का जीवन दूभर हो जाता है । कभी-कभी तो आत्मघात की भी नौबत आ जाती है । कुछ लोग दस वर्ष की कन्या को साठ वर्ष के बूढ़े के साथ ब्याह देते हैं। वे 'बीबी घर जोग और मियांजी घोर (कब) जोग' इस कहावत को चरितार्थ करते हैं । कोई-कोई सोलह वर्ष की कन्या को दस वर्ष के बच्चे को परणा देते हैं, मानो ऊँटनी के साथ बकरा बाँध दिया हो ! ऐसे कुजोड़ संबंध मिला देने से भी अनर्थ उत्पन्न होता है । महाजनों में, उच्च जातियों में और दयामय जैनधर्म पालने वालों में यह रचना देख कर बड़ा ही आश्चर्य होता है ! इस्लामधर्म के अनुयायी मोमिन लोग अत्यन्त गरीबी के दुःख से पीड़ित होते हुए भी कन्या की कौड़ी मात्र भी ग्रहण नहीं करते, बल्कि यथाशक्ति लड़की को देते हैं और जिनके पूर्वजों ने पुत्री के घर का पानी पीना भी गुनाह समझा, जो कुछ द्रव्य दिये विना पुत्री के घर का पानी भी कभी नहीं पीते हैं, वही लोग अपनी पेट की बच्ची, बेचारी अबला बालिका को, बेजोड़ संबंध में फंसा कर, गाय-बकरी की तरह नीलाम पर चढ़ाते हैं। वह अपना सारा जीवन हाय हाय करके पूरा करती है । उसे घोर दुःख के गड़हे में गिराते हुए जरा भी शर्म और दया नहीं लाते हैं ! कसाई से भी अधिक दयाहीन-कठोर कलेजा बना कर अपनी प्यारी पुत्री के रक्त-मांस का विक्रय करते हैं ! वह वेचारी रो-रो कर मर जाती है ! इस बेजोड़ संबंध और कन्याविक्रय के फलस्वरूप दुराचार फैलता है । अतृप्त वासना वाली वह स्त्री व्यभिचार के घोर पाप में पड़ जाती है !
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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