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________________ * सम्यक्त्वं * बारहवाँ बोल-स्थानक छह (१) आत्मा है-घट, पट, आदि के समान प्रात्मा को आँखों से न देख सकने के कारण कई लोग उसके विषय में नाना प्रकार की अज्ञानपूर्ण कल्पनाएँ करते है । कोई-कोई नास्तिक कहते हैं कि आत्मा कोई वस्तु नहीं है। पृथ्वी, पानी, आग और हवा के मिलने से चेतनाशक्ति उत्पन्न हो जाती है और इनके बिखर जाने पर चेतना नष्ट हो जाती है। परलोक में जाने वाली कोई आत्मा नहीं रहती। ऐसा कहने वाले लोग घोर अज्ञान में पड़े हुए हैं। उनसे पूछना चाहिए कि अमर आत्मा नहीं है तो 'प्रात्मा नहीं है ऐसी कल्पना करने वाला और आत्मा का निषेध करने वाला कौन है । घट और पट को मानने वाला और जानने वाला कौन है ? शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श का विज्ञान किसे होता है ? स्वप्न में देखे हुए पदार्थों का जागृत अवस्था में स्मरण करने वाला कौन है ? इन प्रश्नों के उत्तर में यदि कहो कि पृथ्वी आदि के मेल से बनी हुई चेतनाशक्ति से यह सब काम होते हैं, तो यह कहना ठीक नहीं है । पृथ्वी, पानी आदि जड़ हैं। जड़ पदार्थों में चेतनाशक्ति नहीं होती। फिर उनके मेल से भी वह शक्ति कैसे उत्पन्न हो सकती है ? बालू के एक कम में तेल नहीं है तो उनके समूह से भी तेल उत्पन्न नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त अगर अात्मा नहीं है तो शरीर से कौन निकल जाता है । मृत्यु क्यों होती है ? पृथ्वी, पानी आदि तो मुर्दा शरीर में भी रहते हैं, फिर मुर्दा जीवित क्यों नहीं हो जाता ? इन सब बातों से ज्ञात होता है कि आत्मा, पृथ्वी आदि भूतों से अलग ही पदार्थ है। पाश्चर्य की बात तो यह है कि खुद आत्मा ही आत्मा के अस्तित्व में शंकाशील होता है। मनार बुद्धिमान् को समझना चाहिए कि जो शंका करता है वही तो (२) प्रात्मा नित्य है-कुछ लोग शात्मा का होना को स्वीकार काते हैं किन्तु उसे क्षषिक-विनश्वर मानते हैं। उनके मन से जैसे जगत् के
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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