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________________ [ ६३६ उत्कृष्ट धर्मलाभ आदि के कार्य के लिए कोई सम्यक्त्व - विरुद्ध कार्य करने के लिए कहे और वह वैसा कार्य करे तो सम्यक्त्व का भंग नहीं होता । * सम्यक्त्व (६) वृत्तिकान्तार – सम्यक्त्वी कदाचित् रास्ता भूलकर घोर जंगल में पहुँच जाय । वहाँ अपने शरीर या कुटुम्ब की रक्षा लिए किसी वस्तु का सेवन करना पड़े जो उसकी मर्यादा से बाहर हो, अथवा वहाँ कोई रास्ता बतलाने का लालच देकर सम्यक्त्व से विरुद्ध आचरण करने के लिए कहे, ऐसी स्थिति में सम्यक्त्वी प्राण या स्वजन की रक्षा के लिए वैसा कोई कार्य करे तो सम्यक्त्व भंग नहीं होता । इसी प्रकार दुष्काल आदि विकट प्रसंग उपस्थित होने पर शरीर या स्वजनों की प्राणरक्षा के लिए समकित से विरुद्ध कोई कार्य करना पड़े तो सम्यक्त्व भंग नहीं होता । इन छह को आगार कहते हैं । कोई-कोई इन्हें छंडी (गली) भी कहते हैं। सड़क पर चलते-चलते कदाचित् कोई व्याघात उपस्थित हो जाय तो सड़क छोड़कर गली में होकर फिर सड़क पर पहुँचना होता है, उसी प्रकार सम्यक्त्व का पालन करते-करते पूर्वोक्त व्याघातों में से कोई व्याघात उपस्थित हो जाय तो इन गलियों में से निकल कर फिर सम्यक्त्व रूपी सड़क पर आ जाना चाहिए | 1 1 यह आगार सब सम्यक्त्वयों के लिए नहीं है । जो सम्यग्दृष्टि शूरवीर, धीर, साहसी और दृढ़ होता है, जिसकी हड्डियों की मीजी किरमिची रंग के समान धर्म के रंग में रँगी हुई हैं, वे प्राण, धन आदि सर्वस्व का नाश हो जाने पर भी सम्यक्त्व में लेश मात्र भी दोष नहीं लगाते । ये घोर से घोर आपदा का दृढ़ता के साथ सामना करते हुए अपने समकित को बेदाग बनाये रखते हैं । वे अरक और कामदेव आदि श्रावकों की भाँति प्राणान्व संकट में भी कभी चलायमान नहीं होते । किन्तु जिनमें इतना साहस नहीं है, दृढ़ता नहीं है, कायरता है, जो संकट आने पर दृढ़ता के साथ धर्म का आचरण नहीं कर सकते उनके लिए श्रागार हैं। वे इन भागारों पर दृष्टि रखते हुए, सम्यक्त्व से विरुद्ध श्राचरण करते हुए भी साफ भ्रष्ट नहीं होते हैं | अलवत्ता उनका सम्यक्त्व दूषित अवश्य हो जाता 1
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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