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________________ * मिथ्यात्व [ ५५६ भक्त की रक्षा के लिए अथवा अपनी रक्षा के लिए अवतार धारण करने की मान्यता रखना, निरंजन निराकार सिद्ध की मूर्ति को सिद्ध मानना, इत्यादि प्रकार से अरूपी को रूपी कहना मिथ्यात्व है । २२ - अविनय मिथ्यात्व श्री जिनेन्द्र भगवान् के, सद्गुरु महाराज के वचनों को उत्थापना, उनकी आज्ञा का उल्लंघन करना, उन्हें झूठा कहना, भगवान् को चूका बतलाना, गुणवान् ज्ञानवान्, तपस्वी, त्यागी, वैरागी, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका आदि उत्तम पुरुषों की निन्दा करना, कृतन होना, सो विनय मिथ्यात्व है । २३ आशातना मिथ्यात्व शातना के तेतीस भेद हैं: - (१) अरिहन्त भगवान् की आशातना (२) सिद्ध भगवान् की आशातना (३) श्राचार्य महाराज की श्राशातना ( ४ ) उपाध्यायजी की श्राशातना (५) साधु की आशातना (६) साध्वी की श्राशातना ( इनमें जो गुण विद्यमान हैं उनका अपलाप करने से और जो दोष न हों उनका आरोप करने से आशातना होती है) । (७) श्रावक की श्राशातना (८) श्राविका की श्राशातना (श्रावक-श्राविका को कुपात्र कहना, ज़हर के टुकड़े कहना इनका पोषण तोषण करने में एकान्त पाप बतलाने आदि से होती है) । (६) देवता की श्राशातना (१०) देवी की आशातना (११) स्थविर की आशातना (१२) गणधर की आशातना (१३) इस लोक में ज्ञानादि उत्तम गुणों को धारण करने वालों को श्राशातना (१४) परलोक में उत्तम गुणों से सुख प्राप्त करने वालों की श्राशातना (१५) समस्त प्राणी, भूत, जीव, सत्व, की आशातना, यथा-जीव की हिंसा में धर्म और रक्षा में पाप बतलाना, जीव को जीव न मानना । (१६) कालोकाल यथोचित
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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