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________________ * मिथ्यात्व [५३१ अादि करके ग्वालिनों की इजत ली। महेश का भीलनी ने छला । पार्वती के डर से गंगा को जटा में छिपा लिया । यह सब कर्तव्य मायामय हैं । इसलिए यह कैसे कहा जा सकता है कि वे माया के अधीन नहीं थे। प्रतिपक्षी-सांसारिक जीवों को नीति की शिक्षा देने के लिए, कर्तव्य कार्य बतलाने के लिए भगवान् लीला करते हैं। __ पूर्वपक्षी---यह आपका कथन वैसा ही है जैसे किसी के पिता ने अपने पुत्र को प्रथम तो दुराचार करने की शिक्षा दी और जब वह दुराचार करने लगा तब उसे दंड दिया। इसी प्रकार पहले जीवों को अनाचार के कामों दस अवतारों के काम: वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोललुद्धम् , दैत्यं दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते । पौलस्त्यं जयते हलं कलयते कारुण्यमातन्वते, म्लेच्छन् मूर्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नमः॥ -(जयदेवकृत गीतगोविन्द) (१) शङ्ख नामक दैत्य चारों वेद रसातल में ले भागा था तब मत्स्य अवतार धारण करके दैत्य को मार कर वेदों का उद्धार किया। (२-३) पृथ्वी रसातल में जाने लगी तब कर्म (कछुवे) का अवतार लेकर अपनी पीठ पर पृथ्वी धारण कर रक्खी और वराह (सुअर) का अवतार धारण करके दाढ़ों में पृथ्वी पकड़ रक्खी। (४) हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद विष्णुभक्त बना तो ऋद्ध होकर वह अपने पुत्र को मारने लगा। तब नरसिंह अवतार धारण करके हिरण्यकश्यपु का पेट नखों से फाड़ डाला और उसे मार डाला (५) बलि नामक दैत्य ने इन्द्र पद की प्राप्ति के लिए १०० यज्ञ किये । देव की इच्छा थी कि प्रहलाद इन्द्र बने । अतः बामन अवतार धारण कर ३॥ पैर पृथ्वी की याचना की। तीन पैरों से सारी पृथ्वी नाप ली। चौथा पैर बलि की पीठ पर रख कर उसे पाताल में पहुँचाया। दीपावली के ४ दिन बलि को राजा बना कर पहरेदार बने।६ सहस्त्रा नामक क्षत्रिय की बहिन रेणुका का जमदग्नि ऋषि ने जबर्दस्ती पाणिग्रहण कर लिया। वह कुपित होकर जमदग्नि को दुःख देने लगा। तब भगवान् ने जमदग्नि का पुत्र बन कर अर्थात् परशुराम का अवतार धारण करके उस को मारा और २१ बार पृथ्वी को क्षत्रियहीन बना दिया। (७) रावण दैत्य यज्ञभंग करने लगा, तब रामावतार धारण कर रावण का संहार किया। (८) कंस नामक दैत्य को मारने के लिए कृष्णावतार धारण किया। (8) शीतल रूप बुद्धावतार ने म्लेच्छों के मन्दिर बढ़ाये (१०) कलि अवतार धारण कर म्लेच्छों का विनाश किया। मच्छ, कच्छ, वाराह और नरसिह अवतार कृतयुग में हुए; वामन, परशुराम और राम अवतार त्रेता युग में हुए । कृष्ण और बुद्ध अवतार द्वापर में हुए और कलि अवतार कलियुग में हधा।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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