SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 573
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ® मिथ्यात्व, [५२६ पूर्वपक्षी-ब्रह्म से जीव अलग है या दोनों एक ही हैं ? अगर आप दोनों को एक कहते हैं तो आपके वचन पागल के प्रलाप के समान ठहरते हैं; क्योंकि एक तरफ आप दो को एक कहते हैं और दूसरी तरफ ब्रह्म से जीव की उत्पत्ति कहते हैं। इसके अतिरिक्त अगर दोनों एक हैं तो ब्रह्म की तरह जीव को भी अलिप्त मानना पड़ेगा या जीव की तरह ब्रह्म को भी माया से लिप्त मानना पड़ेगा। जैसे कोई मुखे अपनी ही तलवार से अपना ही हाथ काट लेता है, उसी प्रकार ब्रह्म ने अपने अंश रूप जीव को माया से लिप्त किया तो ब्रह्म ज्ञानस्वरूप किस प्रकार ठहरेगा ? अगर आप ब्रह्म और माया को अलग-अलग मानते हैं तो ब्रह्म निर्दय कहलाएगा, क्योंकि उसने बिना किसी कारण जीव के पीछे भाया लगा दी और उसे दुःखी बनाया । अगर आप मानते हैं कि माया से शरीर वगैरह उपाधि हुई तो माया स्वयं हाड़, मांस, रुधिर रूप कहलाई । और शारीरिक पुद्गल वर्ण, गंध, रस, स्पर्श मय रूपी होने से अरूपी ब्रह्म में किस प्रकार समा सकते हैं ? अगर समा जाते हैं तो ब्रह्म भी रूपी ठहरेगा । इससे ब्रह्म का अरूपी स्वरूप नहीं रह जायगा। प्रतिपक्षी-माया से सत्त्व, रजस् और तमस-यह तीन गुण उत्पन्न होते हैं। पूर्वपक्षी—यह तीन गुण चेतन के स्वभाव हैं और माया जड़ है। जड़ से चेतन की उत्पत्ति कैसे हो गई ? अगर हो जाती है तो सूखे काठ से भी इन तीनों गुणों की उत्पत्ति होनी चाहिए । इन तीन गुणों से तीन देव उत्पन्न हुए हैं । अर्थात् रजोगुण से ब्रह्मा, सतोगुण से विष्णु, और तमोगुण से शंकर हुए हैं। यह बात सच्ची मान ली जाय तो यह शंका उत्पन्न होती है कि गुण से गुणी की उत्पत्ति कैसे हो सकती है ? और मायामय वस्तु पूज्य कैसे हो सकती है ? आप यह कहते हैं कि यह तीनों देव माया के अधीन नहीं हैं, मगर यह बात ठीक नहीं जंचती, क्योंकि माया के अधीन होकर इन देवों ने व्यभिचार वगैरह निर्लज काम किये हैं। इसका उत्तर भाप यह दे सकते हैं कि चोरी जारी आदि करना तो भगवान् की लीला है । तो
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy