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________________ * अरिहन्त [ २ जिणा - संसार के समस्त प्राणियों का पराभव करने वाले कर्मशत्रुओं को जीतने वाले । जावयाणं - भगवान् ने अपने अनुयायियों को भी कर्म-शत्रुओं को जीतने की युक्ति बतलाई है । अतः वे ज्ञापक भी हैं । · तिन्नाणं —- भगवान् दुस्तर संसार - सागर से तिर चुके हैं । तारयाणं - भगवान् अन्य प्राणियों को भी सन्मार्ग के उपदेश द्वारा संसार से तारते हैं । बुद्धाणं - भगवान् स्वयं सभी तत्वों का सम्पूर्ण बोध प्राप्त कर चुके हैं। बोहयाणं - भगवान् अन्य जीवों को तत्व का ज्ञाता बनाते हैं । मुत्ता -राग-द्वेष के कारण उत्पन्न होने वाले कर्म- बन्धन से भगवान् मुक्त हो चुके हैं । मोयगाणं – भगवान् संसार के प्राणियों को भी कर्म-बन्धन से मुक्त करते हैं । सबन्नूरणं सव्वदरिसीणं — भगवान् सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं । सूक्ष्म, बादर, त्रस, स्थावर, कृत्रिम, अकृत्रिम, नित्य, अनित्य आदि समस्त जगत् पदार्थों के को ज्ञान से (विशेष रूप से ) जानते हैं और दर्शन से ( सामान्य रूप से) देखते हैं । यहाँ अरिहन्त भगवान् के किंचित गुणगणों का वर्णन किया गया है । भगवान् आत्मा के विकास की चरम सीमा को, परमात्मदशा को, सम्पूर्ण विशुद्ध चेतनास्वभाव को प्राप्त कर चुके हैं। वे ऐसे-ऐसे अनन्तानन्त गुणों के धारक हैं। उनके समस्त गुणों का वर्णन या कथन होना असंभव है। तीर्थकरों की नामावली दस कर्मभूमि क्षेत्रों के भूतकालीन, वर्त्तमानकालीन और भविष्य - कालीन - तीनों चौबीसियों के ७२० तीर्थङ्करों के नाम नीचे दिये जाते हैं:
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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