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________________ * जन-तत्त्व प्रकाश * और जिनके अभाव में संसार में हाहाकार मच जाने की नौबत आ सकती है, उन पशुओं को आग की भेंट कर देने से अगर पुण्य होता है तो फिर पाप किस प्रकार होगा ?* यज्ञ करने वालों का कथन है कि: यज्ञार्थं निधनं प्राप्ता प्राप्नुवन्त्युच्छ्रितं पुनः । ___ अर्थात् जो पशु आदि यज्ञ के निमित्त मारे जाते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है । अतः यज्ञ में होम करके हम उन प्राणियों को सब दुःखों से मुक्त कर देते हैं और स्वर्ग में पहुँचा देते हैं । ऐसे लोगों के संबंध में धनपाल कवि कहते हैं नाहं स्वर्गतलोपभोगतृषितो नाभ्यर्थितस्त्वं मया, सन्तुष्टस्तृणभक्षणेन सततं साधो ! न युक्तं तव । स्वर्गे यान्ति यदि त्वया विनिहता यज्ञैध्रुवं प्राणिनो, यज्ञं किन करोषि मातृषिभिः पुत्रैस्तथा वान्धवैः ।। इस पद्य का हिन्दी-अर्थ निम्नलिखित हिन्दी-पद्य में आ जाता है: स्वर्ग-सुख में न चहौं, देहु मुझे यों न कहौं, पास खाय रहौं मेरे मन यही भाई है। जो तू यह मानत है वेद यों बखानत है, जग्य जरौ जीव पावे स्वर्ग-सुखदाई है। डारै क्यों न बीर ! यामें अपने कुटुम्ब ही को, मोहिं जिन जारै जगदीस की दुहाई है। भागवत में प्राचीनवर्हि राजा को नारद ऋषि उपदेश देते हुए कहते हैं कि: * यूपं छित्वा पशून हत्वा, कृत्वा रुधिर कदमम् । यद्येवं गम्यते स्वर्ग, नरके केन गम्यते ॥ अर्थात्-वेदोक्त रीति से यज्ञ के स्तम्भ को छेद कर, पशुओं को मार कर, पृथ्वी पर रुधिर की कीचड़ मचा कर यज्ञकर्ता अगर स्वर्ग जायगा तो फिर नरक में कौन जायगा।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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