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________________ अरिहन्त, [ २३ मिले और वे भुला कर ले गये। उन्होंने उसका सम्यग्ज्ञान आदि रूपी धन हरण कर लिया, अज्ञान की पट्टी बाँध दी, ममता रूपी वृक्ष से उसे बाँध दिया । तब तीर्थङ्कर रूपी महाराज, चतुर्विध सङ्घ रूपी चतुरङ्गिणी सेना से युक्त होकर, पाखण्डों के विनाश रूपी शिकार करने लिए संसार-अटवी में पधारे । दुःखी जीवों को देखकर, करुणा से प्रेरित होकर 'माहण' 'माहण' अर्थात् मत मारो, मत मारो, ऐसी दयामया ध्वनि से अभयदयाणं-जगत् के समस्त प्राणियों को सातों प्रकार के भयों से मुक्त करने वाले–छुड़ाने वाले-सचे अभयदाता भगवान् ही है। चक्खुदयाणं-ज्ञान रूप नेत्रों पर बँधी हुई ज्ञानावरणीय रूप पट्टी को हटा कर ज्ञान रूप चक्षु के दाता भगवान् ही हैं । मग्गदयाणं-अनादिकाल से मार्ग भूले हुए और संसार-अटवी में फंसे हुए प्राणी को मोत-मार्ग दर्शक व प्रवर्तक भगवान् ही हैं । सरणदयाणं-चार गतियों के दुःखों से त्रास पाने वाले प्राणियों को ज्ञान रूप सुभट का शरण देने वाले भगवान ही हैं। जीवदयाणं-मोक्ष स्थान तक पहुँचाने के लिए संयम रूप जीविका के दाता भगवान ही हैं। धम्मदयाणं-आत्मोन्नति से गिरते हुए जीवों को धारण करके नहीं गिरने देने वाले श्रुत और चारित्र रूप धर्म के दाता भगवान ही हैं । धम्मदेसियाणं-धर्म का उपदेश करने वाले । एक योजन के मण्डल में स्थित बारह प्रकार की परिषद् को स्याद्वादमय, सत्य, शुद्ध, निरुपम तथा यथातथ्य धर्म के स्वरूप का उपदेश देने वाले अरिहन्त ही हैं । धम्मनायगाणं-चतुर्विध सङ्घ रूप टांडे (तांडे) के रक्षक और प्रवर्तक अर्थात् नायक अरिहन्त भगवान् ही हैं। धम्मसारहीणं-धर्म के सारथि । धर्म रूप रथ में आरूढ़ चारों तीर्थों को उन्मार्ग में जाने से बचाकर, सन्मार्ग में लगाने वाले सच्चे सारथि भग
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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