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________________ ४८४ । ® जैन-तत्व प्रकाश गुणस्थान कहते हैं। ऐसा जीव जघन्य तीसरे भव में और उत्कृष्ट १५ भवों में अवश्य मोक्ष प्राप्त करता है। (७) अप्रमत्तसंयत गुणस्थान-मद, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा इन पाँचों प्रमादों से रहित, शुद्ध संयम का पालन करने वाले जीव की अवस्था को अप्रमत्तसंयत गुणस्थान कहते हैं। यह जीव जघन्य उसी भव में और उत्कृष्ट तीसरे भव में मोक्ष जाता है। (८) नियतिवादर गुणस्थान—पूर्वोक्त १५ प्रकृतियों तथा हास्य, रति, अरति, भय शोक एवं जुगुप्सा, इन २१ प्रकृतियों का क्षय करे अथवा उपशम करे तव जीव की जो स्थिति होती है, उसे नियहिबादर गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान में जीव अपूर्वकरण (पहले कभी नहीं किया हुआ परिणाम अर्थात् कषायों की मन्दता) करता है। जो प्रकृतियों का उपशम करता है वह उपशमश्रेणी-प्रतिपन्न होकर ग्यारहवें गुणस्थानक तक पहुँचता है और फिर नीचे गिरता है और जो प्रकृतियों का क्षय करता है, वह आपक श्रेणी पर आरूढ़ होकर नौवें और दसवें गुणस्थान में होता हुआ सीधे बारहवें गुणस्थान में जा पहुँचता है और तत्काल तेरहवें गुणस्थान में पहुँचकर केवलज्ञानी हो जाता है। (8) अनियट्टिवादर गुणस्थान—पूर्वोक्त २१ प्रकृतियों का और संज्वलन त्रिक (क्रोध, मान, माया) तथा तीन वेद (स्त्री वेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद) का इस प्रकार कुल २७ प्रकृतियों का उपशम करे या क्षय करे तब नौवें गुणस्थान की प्राप्ति होती है। यह अवेदी और सरलस्वभावी जीव जवन्य उसी भव में, उत्कृष्ट तीसरे भव में मोक्ष जाता है । * गाथा-सुयकेवलि-आहारग-रिजुमइ-उवसंतगा विउ पमाएणं । ___ हिंडंति भवमणंतं, तं अणतरमेव च उगइया । अर्थात्-श्रतकेवली, आहारकशरीरी, ऋजुमति मनःपर्ययज्ञानी और उपशान्तमोह ऐसे उत्तम पुरुष भी प्रमादाचरण करके चतुर्गति में संसार-परिभ्रमण करते हैं। यह पाँचौ प्रमाद महाभयंकर हैं । साधु को इनके फन्द में नहीं फंसना चाहिए। + प्रश्न-पाठवाँ निवृत्तिबादर और नौवाँ अनिवृत्तिबादर, ऐसा उल्टा क्रम क्यों रक्खा गया है ?
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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