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________________ सब धर्न [४७७ और संध्याकाल का मान बचा है, मार पुकलो का स्वभाव चंचल है, इत्यादि उपमाओं से जीव को पहचानना नमागते श्री भगवतीसूत्र के २० वे शतक में पुद्गल-पील का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। धर्म अधर्म और आकाश-रह तीनों एक एक एकद्रव्य हैं तथा स्कंध, देश और प्रदेशमय हैं : प्रत्येक प्रदेश के अनन्त पर्याय हैं; क्योंकि अनन्त जीवों और पुद्गलों को गति, स्थिति और अबगला में ३ महायक हो रहे हैं । इसी प्रकार काल द्रव्य, वस्तु को नवीन ने पुरानी रनने में नहायक है। यह चारों द्रव्य अनादि, अनन अलपी, और अचेतन हैं। आकाश अनन्तप्रदेशी है। काल अप्रदेश है और गुद्गल परमाणु से लेकर अनन्त प्रदेशात्मक स्कन्ध रूप नाना प्रकार का है: एक परमाणु की अपेक्षा एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पश है; अनेक परमाणुनों की अपेक्षा ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस, ४ अथवा ८ स्पर्श, इस प्रकार १६ या २० बोल पुद्गल में पाये जाते हैं। यह पाँचों अजीव द्रव्य गुण-गयार युक्त हैं। पुण्य तत्त्व पर चार प्रमाण-प्रत्यक्ष-शुभवर्स, रस, गंध, स्पर्श, मानन्दित मन, हर्षमय वचन और काया से सालावेदनीय वेदते पुरुष को देखकर पुण्यवंत कहना । अनुमान से जाति, कुल, वन, रूप, सम्पदा एवं ऐश्वर्य की उत्तमता देखकर अनुमान करना कि यह पुण्यवंत है। उपमा-जैसे जितना गुड़ डाला जाता है, उतनी ही मिठास आती है, इसी प्रकार पुए के रस में भी षड्गुण हानि-वृद्धि समझनी चाहिए । पुण्य की अनन्त वर्गस्याएँ और अनन्त पर्याय हैं। जैसे--पुण्योदय से दवायु का बंध पड़ा, पर काल की अपेक्षा चतुःस्थानपतित (चौठाणाडिया) रस होता है। ज्यों-ज्यों शुभ योग की प्रवृत्ति ज्यादा होती है त्यों-त्यों पुण्य की वृद्धि होती है । तथा पुण्यानुबंधी पुण्य तीर्थङ्करवत्, पुण्यानुबंधी पाप हरिवंशी, पापानुबंधी पुण्य गोशालकवत्, तथा अनार्य राजायन और पापानुबंधी पाप नागश्रीवत्, इत्यादि उपमाओं से पुण्य का स्वरूप समझना। इसके अतिरिक्त पुण्यवान् को पुण्यवान् की उपमा से प. चानना, जैसे-'देवो दोगुंदगो जहा' अर्थात् इन्द्र के त्रायस्त्रिंशक (गुरुस्थानी) देवों के समान पुण्यवान् प्राणी सुख भोगता है। तथा-'चंदो इव ताराण, भरहो इव मणुस्साण' अर्थात् जैसे तारागण
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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