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________________ * सूत्र धर्म * [४७५ देखकर अनुमान से जाना कि यहाँ भविष्य काल में कुछ अशुभ होता दिखता है। इस प्रकार अनुमान से भूतकाल, भविष्यकाल एवं वर्तमान काल की बात जानना विशेष जानना कहलाता है । (३) आगम प्रमाण–प्राप्त अर्थात् प्रामाणिक पुरुष के वचन से जो ज्ञान होता है, उसे आगमप्रमाण कहते हैं । उसके तीन भेद हैं-(१) सुत्तागमे-द्वादशांगी रूप जिनेश्वर भगवान् की वाणी तथा कम से कम दस पूर्व के ज्ञाता मुनीश्वरों के बनाये हुए ग्रन्थ सुत्तागमे (सूत्रागम) कहलाते है। (२) अत्थागमे-सूत्रागम के आशय के अनुसार, सब की समझ में आने योग्य, किसी भी भाषा में उनका अर्थ करना या समझना अर्थागम है । (३) तदुभयागमे-पूर्वोक्त सूत्रों और ग्रन्थों का तथा उनके अर्थ का अनुकूल समास 'तदुभयागमे' कहलाता है । (४) उपमा प्रमाण—किसी प्रसिद्ध (ज्ञात) वस्तु की सदृशता के आधार से अप्रसिद्ध (अज्ञात) वस्तु को जानना उपमा प्रमाण है । इसकी चौभंगी है:-(१) किसी सत् वस्तु से सत् वस्तु की उपमा देना । जैसे-किसी ने यह प्रश्न किया कि भविष्य काल की चीवीसी में प्रथम तीर्थक्कर पद्मनाभ कैसे होंगे ? इसके उत्तर में कहना-वे वर्तमानकालीन चौवीसी के अन्तिम तीर्थंकर श्रीमहावीर स्वामी के समान होंगे। यह सत् वस्तु से सत् वस्तु की उपमा देना है। (२) सत् से असत् की उपमा देना । जैसे-नारकों और देवों की आयु पल्योपम और सागरोपम की है, यह सत् वस्तु है, किन्तु पल्य और सागर के समय की गणना के लिए चार कोस के गड़हे आदि का जो दृष्टान्त दिया है, सो गड़हा किसी ने भरा नहीं है, कोई भरता नहीं है और कोई भरेगा भी नहीं। अतः यह सत् को प्रसव उपमा है। (३) असत् को सत् की उपमा देना; जैसे किसी ने प्रश्न किया कि द्वारिका नगरी कैसी ? तो उत्तर दिया गया-देवलोक जैसी । जुवार कैसी ? मोती के दाने जैसी। जुगनू कैसा ? सूर्य जैसा। यहाँ जिन वस्तुओं को उपमा दी गई है, वे हैं तो मगर जैसी उपमा दी गई है वास्तव में वैसी नहीं हैं। (४) असत् वस्तु को असत् की उपमा देना; जैसे घोड़े के सींग कैसे ?
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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