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________________ ४४० ] * जैन-तत्त्व प्रकाश * जाता है और नवीन कर्मों के आगमन को रोका जाता है। इन चार कारणों से मोक्ष की प्राप्ति होती है । मोक्षशास्त्र के प्रारम्भ में ही कहा है—'सम्यरदर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः।' अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र यह तीनों मिलकर मोक्ष के साधन हैं। यहाँ तप को चारित्र में ही गर्भित कर लिया गया हैं। उक्त चार मोक्ष के कारणों में से ज्ञान और दर्शन-यह दोनों आत्मा के अनादिअनन्त विशेष गुण हैं। वे मुक्त-अवस्था में भी सदैव विद्यमान रहते हैं। यह दोनों श्रात्मा के सहचारी गुण हैं। जैसे सूर्य का प्रताप और प्रकाश गुण एक दूसरे को छोड़कर नहीं रह सकते, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान एक दूसरे के बिना नहीं रहते। अर्थात् ज्ञान के विना दर्शन नहीं और दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता। जब दर्शन मिथ्या होता है तो ज्ञान भी मिथ्या होता है और जब दर्शन सम्यक् होता है तब ज्ञान भी सम्यक् हो जाता है । इन दोनों गुणों की निर्मलता और सम्पूर्णता के कारण चारित्र और तप हैं। चारित्र और तप गुण सादि और सान्त हैं। मोक्ष प्राप्त करने तक ही इनकी आवश्यकता रहती है। नौ तत्त्व की चर्चा द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा विचार किया जाय तो उक्त नौ तत्त्वों का जीव और अजीव-इन दो तत्वों में ही समावेश हो जाता है । जो जीव है वह सदा जीव ही रहता है और जो अजीव है वह सदा अजीव ही रहता है। यह दोनों तत्त्व मूलभूत हैं। शेष सात तत्वों का जीव और अजीव में ही समावेश हो जाता है, क्योंकि वे इन्हीं दोनों से उत्पन्न हुए हैं। स्त्रव, बन्ध, संवर और निर्जरा के दो-दो भेद हैं-द्रव्य और भाव । कर्मों का आना द्रव्य श्रास्रव है, बँधना द्रव्यबन्ध है, रुकना संवर है और आत्मप्रदेशों से अलग होना निर्जरा है। यह सब कर्मों की अवस्थाविशेष हैं और कर्म अजीव हैं अतः द्रव्य पात्र व, द्रव्यबन्ध, द्रव्यसंबर और द्रव्यनिर्जरा अजीवतत्व में सम्मिलित होते हैं।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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