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________________ ४०० ] जैन-तत्व प्रकाश बारह भेद हैं- [१] वृक्ष [२] गुच्छ [३] गुल्म [४] लता [५] बल्ली [६] तण [७]बल्लया [८] पञ्चया [९] कुहण [१०] जलवृक्ष [११] औषधि और [१२] हरितकाय । इनमें से वृक्ष के दो भेद है-एक बीज वाले और बहुत बीजों वाले । हरड़, बहेड़ा, आँवला, अरीठा, भिलावा, आसापालव, आम, जामुन, बेर, महुवा, खिरनी आदि के वृक्ष एक बीज वाले (गुठली वाले) होते हैं। जायफल, सीताफल, अनार, विल्वफल, कपित्थ (कविठ-कैथ), केर, नींबू, तेंदू (टीमरू) आदि बहुबोज वाले है । रिंगनी, जवासा, तुलसी, पुंवाड़ा आदि पौधे गुच्छ कहलाते है । सोजाई, जुही, केतकी, केवड़ा, गुलाब आदि अनेक प्रकार के फूलों के झाड़ गुल्म कहलाते हैं। नागलता, अशोकलता, पमलता, आदि अनेक प्रकार के जमीन पर फैल कर ऊँचे जाने वाले झाड़ लता कहलाते हैं। तोरई, ककड़ी, करेला, किंकोड़ा, उवा, खरबूजा आदि अनेक प्रकार की बेलें वल्ली कहलाती हैं। घास, दूब, डाभ आदि घास को तृण कहते हैं। सुपारी, खजूर, दालचीनी, तमाल, नारियल, इलायची, लौंग, ताड़, केले आदि अनेक प्रकार के वृक्ष, जो ऊपर जाकर गोलाकार बनते हैं, वल्लया कहलाते हैं । ईख, एरंड, बेत, वांस आदि जिनके मध्य में गाँठे हों, पव्वया कहलाते हैं। येल्ली के वेले, कुत्ते के टोप आदि, जमीन फोड़ कर निकलने वाले 'कुहाण' कहलाते हैं। कमल, सिंघोड़ा, सेवार आदि पानी में उत्पन्न होने वाली वनस्पति को जलवृक्ष कहते हैं। [१] गोधूम (गेहूं), [२] जो [३] जवार [४] बाजरी [५] शालि [६] वरटी [७] राल [८] कांगनी [६] कोद्रव [१०] वरी [११] मणची [१२] मकई [१३] कुरी [१४] अलसी । इनकी दाल न होने से यह १४ प्रकार के लहा धान्य कहलाते हैं और [१] तुअर [२] मौंठ [३] उड़द [४] मूंग [५] चंवला [६] वटरा [७] तेवड़ा [८] कुलथी [६] मसूर और [१०] चना; यह दस प्रकार के धान्य कठोल कहलाते हैं, क्योंकि इनकी दाल होती है। यह सब २४ प्रकार के धान्य औषधि कहलाते हैं। तथा मूला की भाजी, मैथी की भाजी, बथुवे की भाजी, चंदलाई की भाजी, सुवा की भाजी आदि अनेक प्रकार की भाजी रूप वनस्पति हरितकाय कहलाती हैं। यह सब प्रत्येक बनस्पति के भेद हैं। प्रत्येक वनस्पति में उत्पत्ति के
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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