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________________ ॐ धर्म प्राप्ति [ ३७५ प्रश्न का उत्तर शास्त्र में स्पष्ट रूप से नहीं लिखा रहता । उन मूल सिद्धान्तों के आधार पर प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देने के लिए युक्ति तथा तर्क की यता होती है । (२५) गुणयुक्तता - वक्ता को प्रतिष्ठित, प्रामाणिक, प्रभावशाली और विश्वासपात्र बनाने वाले सभी गुण उसमें होने चाहिए । गुणों के अभाव में उसके वचन मान्य नहीं होते । यह पच्चीस गुण जिसमें पाये जाते हैं वहीं असरकारक और यथार्थ उपदेश दे सकता है । ऐसे ज्ञानी सद्वक्ता संयमी का योग मिलना बहुत कठिन है। सद्गुरु की संगत से १० गुणों की प्राप्ति होती है । श्रीभगवतीसूत्र में कहा है: सवणे नाणे विण्णाणे, पच्चक्खाणे य संजमे । turer तवे चेव, बोदा अकिरिया सिद्धी || अर्थात् – (१) ज्ञानी मुनि का समागम करने से सर्वप्रथम धर्म-श्रवण करने का अवसर मिलता है । (२) जो श्रवण करता है उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है । (३) ज्ञान से विज्ञान (विशिष्ट ज्ञान) का होना स्वभाविक है । (४) विज्ञान होने पर अर्थात् विवेकदृष्टि जागृत होने पर दुष्कृत्य का प्रत्याख्यान होता है । (५) प्रत्याख्यान के फलस्वरूप संवर की प्राप्ति होती है, क्योंकि प्रत्याख्यानी जीव आस्रव को रोक देता है । (६) व का निरोध करने से तीर्थङ्कर की आज्ञा का आराधक हुआ। (७) आराधक होने से तप की प्राप्ति होती है । (८) तप के प्रभाव से कर्म कटते हैं । (६) कर्म कटने से क्रियावान् अर्थात् स्थिर योगी और सब पापों से रहित होता है । (१०) सब पापों से रहित होने पर सिद्धि अर्थात् मुक्ति मिलती है । इस प्रकार सन्तों के समागम से महान् लाभ की प्राप्ति होती है । द - शास्त्रश्रवण सदुपदेशक अर्थात् सद्वक्ता का योग प्राप्त होने पर भी शास्त्र श्रवण करने का योग मिलना बहुत ही मुश्किल है, क्यों कि इस संसार में धर्मशास्त्र
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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