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________________ ॐ धर्म प्राप्ति [३७१ इस प्रकार जो इन्द्रियों के गुलाम हैं, जिनका मन नियंत्रण में नहीं है, जो कनक और कान्ता के कामी हैं, जिन्हें इहलोक और परलोक की तनिक भी चिन्ता नहीं है, जो षटकाय का प्रारंभ करने वाले हैं, गृहस्थों से मी अधिक जीवघात करते हैं, जो लोभी और लम्पट हैं वे अपने चेलों को भी डबोते हैं और आप भी डूबते हैं। जो गुरु लोभी होगा वह दूसरों का रुख देखकर ही बात करेगा। वह सच्चा उपदेश और ज्ञान नहीं दे सकता । वह सोचेगा-अगर भक्त को कोई अप्रिय बात कह देंगे तो उसे बुरा लगेगा और उससे मुझे द्रव्य की प्राप्ति नहीं होगी। ऐसा सोचकर वे श्रोताओं का मन प्रसन्न करने के लिए मीठी-मीठी बातें कहते और अपना मतलब गांठ लेते हैं। श्रोता डुबे या तरे, इससे उन्हें कोई वास्ता नहीं। उन्हें तो नकद नारायण की प्राप्ति से सरोकार है। ऐसे पाखंडी गुरुओं के विषय में ठीक ही कहा है: छोड़िके संसार छार छार से विहार करे, ___माया को निवारी, फिर माया दिलधारी है। पिछला तो धोया कीच, फिर कीच बीच रहे, दोनों पंथ खोये, बात बनी सो बिगारी है। साधु कहलाय नारी निरखै लोभाय और, कंचल की करै चाह प्रभुता प्रसारी है। लीनी है फिकीरी, फिर अमीरी की आश करे, काहे को धिक्कार सिर की पगड़ी उतारी है। जो सुज्ञ जन कल्याणकारी सत्यधर्म की प्राप्ति की इच्छा रखते हों, उन्हें कनक और कान्ता के त्यागी, निर्लोभ, ज्ञानवान् गुरु की खोज करके उन्हें स्वीकार करना चाहिए। ऐसे सद्गुरु ही मंगलकारी हो सकते हैं। उनके उपदेश-प्रकाश से ही मिथ्यात्व रूपी अंधकार का विनाश होगा। ऐसे सद्गुरु की पहचान करने के लिए शास्ज्ञों में पचीस गुण बतलाये गये हैं। जिसमें यह गुण हों वही सच्चा उपदेशक गुरु है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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