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________________ अरिहन्त [. पूर्ण होने पर आयुष्य कर्म के साथ ही साथ समस्त कर्मों का क्षय हो जाता है। ___उपर्युक्त चारों वाघातिक कों का क्षय होने पर ही अरिहन्त पद की प्राप्ति होती है। अरिहन्त भगवान १२ गुणों, ३४ अतिशयों और ३५ वाणी के गुणों से युक्त होते हैं। १८ दोषों से र हत होते हैं। इन सब का विस्तारपूर्वक वर्णन आगे किया जाता है । अरिहन्त के १२ गुण अरिहन्त भगवान् निम्नलिखित बारह गुणों से युक्त होते हैं:-(१) अनन्त ज्ञान (२) अनन्त दर्शन (३) अनन्त चारित्र (४) अनन्त तप (५) अनन्त बल-वीर्य* (६) अनन्त क्षायिक सम्यक्त्व (७) वज्रऋषभनाराच संहनन (८) समचतुरस्त्रसंस्थान (8) चौतीस अतिशय (१०) पैंतीस वाणी के गुण (११) एक हजार आठ लक्षण (१२) चौंसठ इन्द्रों के पूज्य ।x अरिहन्त के ३४ अतिशय सर्व साधारण में जो विशेषता नहीं पाई जाती, उसे अतिशय कहते हैं। अरिहन्त में ऐसी चौंतीस मुख्य विशेषताएँ होती हैं। यह विशेषताएँ * अरिहन्त भगवान् के बल का परिमाण इस प्रकार है:-२०००सिंहों का बल एक श्रष्टापद में, १०००००० अष्टापदों का बल एक बलदेव में, २ बलदेवों का बल एक वासदेव में, २ वासुदेवों का बल एक चक्रवर्ती में, १००००००० चक्रवर्तियों का बल एक देवता में और १०००००००देवताओं का बल एक इन्द्र में होता है। ऐसे बलशाली अनन्त इन्द्र भी मिलकर भगवान् की कनिष्ठा उङ्गली को भी नहीं हिला सकते। ४ कोई-कोई नि० लि. बारह गुण मानते हैं:-(१) अनन्त ज्ञान (२) अनन्त दर्शन (३) अनन्त चारित्र (४) अनन्त तप और (५-१२) पाठ महानिहार्य-अशोक वृक्ष, सिहासन, तीन छत्र, चौसठ चँवर के जोड़े, प्रभामण्डल, अचिंत्त फूलों की वर्षा, दियध्वनि, अन्तरिक्ष में साढ़े बारह करोड़ गेबी बाजे ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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