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________________ * जैन-तत्र प्रकाश * ३६२ ] देश कहलाते हैं । इन आर्यदेशों में मनुष्य जन्म की प्राप्ति होना महा कठिन है । -उत्तम कुल - आर्यदेश में मनुष्यजन्म होने पर भी उत्तम कुल का योग मिलना अत्यन्त कठिन है । जो महापुण्यशाली होता है, उसी का उत्तम कुल में जन्म होता है । कितनेक कुलीन मनुष्य पुत्र न होने के कारण बहुत संतप्त रहते हैं, किन्तु पूर्वोपार्जित प्रबल पुण्य के बिना पुत्र की प्राप्ति नहीं होती । संसार में पुण्यशाली जीव थोड़े ही होते हैं । नीच कुलों में देखा जाय तो पापी जनों की उत्पत्ति अधिक दिखाई देती है। इसका कारण यही है कि संसार में पापी जीव बहुत देखे जाते हैं । यहाँ यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि जाति मात्र से ही किसी को उच्च या नीच नहीं कहा जा सकता। क्योंकि शरीर की आकृति, अवयव, शरीर के भीतर के विभाग सभी मनुष्यों के समान होते हैं। अतएव मूलतः मनुष्य जाति एक कहलाती है । कहा भी है, मनुष्यजातिरैकेवजातिकर्मोदयोद्भवा । वास्तव में उच्चता और नीचता गुण-कर्मों से आती है । " उत्तम गुणों वाले और सत्कर्म करने वाले मनुष्य उच्च गिने जाते हैं और नीच कर्म करने वाले मनुष्य नीच गिने जाते हैं । श्रीउत्तराध्ययन सूत्र, अध्याय २५ वें में श्रीजयघोष मुनि कहते हैं: कम्मुणा भणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तियो । वसो कम्पुणा होइ, सुद्दो हव कम्पुणा || अर्थात् कर्म के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कहलाते हैं । 'ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः' अर्थात् जो ब्रह्म या आत्मा को जानता हैश्रात्मज्ञान प्राप्त करता है वही ब्राह्मण कहलाता है । 'क्षतात् चायते यः सः क्षत्रियः' अर्थात् जो निर्बलों की रक्षा करता है वही क्षत्रिय कहलाता है । तथा वाणिज्य (नीतिपूर्वक व्यापार) करने वाला वैश्य कहलाता है और 1. सेवा करने वाला शूद्र कहलाता है। दूसरे ग्रंथों में भी कहा है : -
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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