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________________ * साधु [ ३४१ (१६) गेंड़ा - जैसे गेंड़ा नामक पशु एक दाँत वाला होता है और एक ही दाँत से वह सबको पराजित कर सकता है, उसी प्रकार मुनि एक निश्चय पर स्थिर रह कर समस्त कर्म-शत्रुओं को पराजित करता है । (१७) गन्धहस्ती — गन्धहस्ती को संग्राम में ज्यों-ज्यों भाले के घाव लगते हैं, त्यों-त्यों वह और अधिक पराक्रम करके शत्रुसेना का संहार करता है, इसी प्रकार साधु पर ज्यों-ज्यों उपसर्ग - परिषह आते हैं, त्यों-त्यों बह और अधिक बल-वीर्य प्रकट करके, शूरवीरता धारण करके कर्मशत्रुओं का पराजय करता है । (१८) वृषभ - जैसे मारवाड़ का धोरी बैल उठाये हुए बोझ को, प्राण भले ही चले जाएँ किन्तु बीच में नहीं छोड़ता, यथास्थान पहुँचाता है। उसी प्रकार साधु पाँच महात्रत रूपी महान् भार को प्राणान्त कष्ट सहन करके भी बीच में नहीं त्यागता, वरन् सम्यक् प्रकार से उनका निर्वाह करता है। [१६] सिंह - केसरी सिंह किसी भी पशु के डराये डरता नहीं, उसी प्रकार साधु किसी भी पाखण्डी से डर कर धर्म से विचलित नहीं होता । [२०] पृथ्वी - जैसे पृथ्वी सर्दी-गर्मी, गङ्गाजल-मूत्र, मलीन-निर्मल सब वस्तुओं को समभाव से सहन करती है और धरतीमाता समझ कर पूजा करने वाले पर एवं जूठन, गन्दगी आदि डालने वाले पर तथा खोदने वाले पर समभाव रखती है, उसी प्रकार साधु शत्रु-मित्र पर समभाव रखता है; निन्दक और वन्दक को समान भाव से उपदेश देता है और उन्हें संसार - सागर से तारता है । [२१] वह्नि - घी डालने से जैसे देदीप्यमान होती हैं, उसी प्रकार साधु ज्ञान आदि गुणों से देदीप्यमान होता है । [२२] गोशीर्ष चन्दन - चन्दन ज्यों-ज्यों घिसा जाता या जलाया जाता है त्यों-त्यों सुगन्ध का प्रसार करता है, उसी प्रकार साधु परीषह देने वाले को, कर्मक्षय में उपकारी जान कर समभाव से उपदेश देकर arrar है ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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