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* उपाध्याय *
पराये दोष न देखने वाले, शत्र की भी निन्दा न करने वाले, क्लेशहीन, इन्द्रियों का दमन करने वाले, लज्जाशील आदि अनेक विशेषणों से वखान किया जाता है। ऐसी महिमा से मण्डित 'अजिणा जिणसंकासा' अर्थात् जिन नहीं फिर भी जिन के समान, साक्षात् ज्ञान का प्रकाश करने वाले श्री उपाध्याय महाराज को त्रिकाल वन्दना-नमस्कार हो! गाथाः-समुद्दगंभीरसमा दुरासया, अचक्किया केणइ दुप्पधंसया । सुयस्स पुरणा विउलस्स ताइणो, खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया ।।
-उत्तरा० ११, ३१ अर्थात्-समुद्र के समान गम्भीर-कभी नहीं छलकने वाले, जिनका कोई पराभव नहीं कर सकता, श्रुतज्ञान से परिपूर्ण, छह काय के जीवों के रक्षक, श्री उपाध्याय महाराज कर्म का क्षय करके मोक्ष पधारेंगे।