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________________ ३०४ ] * जैन-तत्ख प्रकाश * (११) जैसे ग्रहों, नक्षत्रों और तारागण से घिरा हुआ, शरद पूर्णिमा रात्रि को निर्मल और मनोहर बनाने वाला चन्द्रमा अपनी समस्त कलाओं शोभित होता है, उसी प्रकार साधुगण रूप ग्रहों से, साध्वीगण रूप नक्षत्रों से, श्रावक-श्राविका रूप तारामण्डल से घिरे हुए, भूमण्डल को मनोहर बनाते हुए ज्ञान रूप कलाओं से उपाध्यायजी शोभा पाते हैं । (१२) जैसे मूषिक आदि के उपद्रव से रहित और सुदृढ़ द्वारों से वरुद्ध तथा विविध प्रकार के धान्यों से भरपूर कोठा शोभा देता है, उसी प्रकार निश्चय व्यवहार रूप दृढ़ किवाड़ों से तथा १२ अङ्ग तथा १२ उपांग के ज्ञान रूप धान्यों से परिपूर्ण उपाध्यायजी शोभा पाते हैं । (१३) जैसे उत्तरकुरुक्षेत्र में जम्बूद्वीप के अधिष्ठाता श्रणादि देव पुष्प, फल आदि से शोभा पाता है, ज्ञान रूपी वृक्ष बनकर अनेक गुण का निवासस्थान जम्बूसुदर्शन वृक्ष पत्र, उसी प्रकार उपाध्यायी श्रार्य क्षेत्र में, रूपी पत्तों, फलों और फूलों से शोभा पाते हैं । (१४) जैसे महाविदेह क्षेत्र की सीता नामक महानदी, पांच लाख बत्तीस हजार नदियों के परिवार से शोभित होती है, उसी प्रकार उपाध्यायजी हजारों श्रोताजनों के परिवार से शोभायमान होते हैं । (१५) जैसे समस्त पर्वतों का राजा सुमेरु पर्वत अनेक उत्तम औष धियों से तथा चार वनों से शोभित होता है, उसी प्रकार उपाध्यायजी महाराज अनेक लब्धियों से तथा चतुर्विध संघ से शोभा पाते हैं । (१६) सबसे विशाल स्वयंभूरमण समुद्र अक्षय और सुस्वादु जल से शोभित होता है, उसी प्रकार उपाध्यायजी अक्षय ज्ञान को, भव्य जीवों को रुचिकर शैली से प्रकाशित करते हुए शोभा पाते हैं । इत्यादि अनेक उपमाओं से युक्त श्री उपाध्याय परमेष्ठी विराजमान हैं । उपाध्यायजी महाराज का भक्तिमान्, अचपल (शांत), कौतुकरहित (गंभीर), छल-प्रपंच से रहित, किसी का भी तिरस्कार न करने वाले, सब पर मैत्रीभावना रखने वाले, ज्ञान के भण्डार होने पर भी अभिमान से हीन,
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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