SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२५३ के संबंध तू ने अनन्त अनन्त वार किये हैं । इस तथ्य का भली भाँति विचार किया जाय तो विदित होगा कि जगत् के सभी जीव सभी के स्वजन हैं । * उपाध्याय इस भावना का भ० मल्लिनाथ के छह मंत्रियों ने चिन्तन किया था । मिथिला नगरी में, कुंभ राजा की प्रभावती नामक रानी के उदर से मल्लि कुंवरी नामक पुत्री का जन्म हुआ । मल्लिकुमारी तीन ज्ञानों से युक्त थी । मल्लिकुमारी ने एक मोहनघर (मनोहर बंगला) बनवाया । उसके मध्य भाग में सोने की एक पोली पुतली, अपने शरीर के बराबर और बहुत मनोहर बनवाई | जब मल्लिकुमारी भोजन करती तो पुतली के ऊपर का ढक्कन हटा कर भोजन का एक कौर उनमें डाल देती और फिर ढक्कन बंद कर देती । एक बार छह देशों के राजा मल्लिकुमारी की सुन्दरता की प्रशंसा सुनकर, अपनी-अपनी फौजों के साथ मिथिला नगरी में या धमके । सब ने मल्लिकुमारी का अपने-अपने साथ विवाह कर देने की माँग की। कुंभ राजा पशोपेश में पड़ गये । किसके साथ मल्लिकुमारी का व्याह करूँ और किस की मांग को अस्वीकार करूँ ? पिता को इस संकट में पड़ा देख मल्लिकुमारी ने कहा-पिताजी, आप चिन्ता न करें । मैं छहों राजाओं को समझा लूँगी । इसके अनन्तर मल्लिकुमारी ने छहों राजाओं को अलग-अलग बुलवाया और भोजनगृह की छह कोठरियों में अलग-अलग ही विठलाया । कोठरियों के द्वार बंद करवा दिये । कोठरियों की जालियों से छहों राजा मध्य भाग में स्थित स्वर्णमय पुतली का रूप देखकर बहुत मोहित हुए । उसी समय मल्लिकुमारी ने पुतली का ढक्कन खोल दिया । ढक्कन खोलते ही बहुत दिनों का पका हुआ और सड़ा हुआ भोजन दुर्गंध मारने लगा। दुर्गंध इतनी तीव्र थी कि उससे कहीं राजा घबरा उठे । तत्र मल्लिकुमारी ने वहाँ पहुँच कर कहा- नरेन्द्र ! जिस पुतली को देख कर आप सब मुग्ध हो रहे थे, उसे देखते ही घबरा क्यों रहे हैं ? सोने की पुतली में प्रतिदिन एक कौर भोजन डालते रहने से ऐसी बदबू निकली तो मेरे इस शरीर रूपी हाड़, मांस और
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy