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के संबंध तू ने अनन्त अनन्त वार किये हैं । इस तथ्य का भली भाँति विचार किया जाय तो विदित होगा कि जगत् के सभी जीव सभी के स्वजन हैं ।
* उपाध्याय
इस भावना का भ० मल्लिनाथ के छह मंत्रियों ने चिन्तन किया था । मिथिला नगरी में, कुंभ राजा की प्रभावती नामक रानी के उदर से मल्लि कुंवरी नामक पुत्री का जन्म हुआ । मल्लिकुमारी तीन ज्ञानों से युक्त थी । मल्लिकुमारी ने एक मोहनघर (मनोहर बंगला) बनवाया । उसके मध्य भाग में सोने की एक पोली पुतली, अपने शरीर के बराबर और बहुत मनोहर बनवाई | जब मल्लिकुमारी भोजन करती तो पुतली के ऊपर का ढक्कन हटा कर भोजन का एक कौर उनमें डाल देती और फिर ढक्कन बंद कर देती । एक बार छह देशों के राजा मल्लिकुमारी की सुन्दरता की प्रशंसा सुनकर, अपनी-अपनी फौजों के साथ मिथिला नगरी में या धमके । सब ने मल्लिकुमारी का अपने-अपने साथ विवाह कर देने की माँग की।
कुंभ राजा पशोपेश में पड़ गये । किसके साथ मल्लिकुमारी का व्याह करूँ और किस की मांग को अस्वीकार करूँ ? पिता को इस संकट में पड़ा देख मल्लिकुमारी ने कहा-पिताजी, आप चिन्ता न करें । मैं छहों राजाओं को समझा लूँगी ।
इसके अनन्तर मल्लिकुमारी ने छहों राजाओं को अलग-अलग बुलवाया और भोजनगृह की छह कोठरियों में अलग-अलग ही विठलाया । कोठरियों के द्वार बंद करवा दिये । कोठरियों की जालियों से छहों राजा मध्य भाग में स्थित स्वर्णमय पुतली का रूप देखकर बहुत मोहित हुए । उसी समय मल्लिकुमारी ने पुतली का ढक्कन खोल दिया । ढक्कन खोलते ही बहुत दिनों का पका हुआ और सड़ा हुआ भोजन दुर्गंध मारने लगा। दुर्गंध इतनी तीव्र थी कि उससे कहीं राजा घबरा उठे । तत्र मल्लिकुमारी ने वहाँ पहुँच कर कहा- नरेन्द्र ! जिस पुतली को देख कर आप सब मुग्ध हो रहे थे, उसे देखते ही घबरा क्यों रहे हैं ? सोने की पुतली में प्रतिदिन एक कौर भोजन डालते रहने से ऐसी बदबू निकली तो मेरे इस शरीर रूपी हाड़, मांस और