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________________ * उपाध्याय * [२३६ (५) श्रीजम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-यह भगवतीसूत्र का उपांग है। इसमें जम्बूद्वीप के क्षेत्र, पर्वत, द्रह, नदी-श्रादि का विस्तार पूर्वक वर्णन है । और शरीर को अलग-अलग मानें तो शरीर में से जीव निकल जाने के पश्चात् वजन कम हो जाना चाहिए। मुनि-चमड़े की मशक को पहले हवा भर कर तोला जाय और फिर हवा निकाल कर तोला जाय, तो दोनों बार का तोल बराबर रहता है। यही बात जीव के संबंध में समझनी चाहिए। राजा-एक चोर को टुकड़े-टुकड़े करके मैने देखा तो कहीं भी जीव दिखाई नहीं दिया । फिर शरीर में जीव कहाँ रहता है ? मुनि-राजन् ! तुम एक लकड़हारे के समान मालूम होते हो । एक बार कितनेक लकड़हारे लकड़ियाँ काटने के लिए जंगल में गये। उन्होंने अपने मे से एक लकड़हारे को एक जगह बैठाकर कहा-भाई, त यहाँ बैठना। अरणि की इस लकड़ी में से अग्नि सुलगा कर भोजन तैयार करना । हम सब लकड़ियाँ काट कर पाएँगे तो अपनी लकड़ियों में से तुझे हिस्सा देंगे। यह कह कर सभी लकड़हारे चले गये। उनके चले जाने पर वहाँ रहे हुए लकड़हारे ने अग्नि जलाने के लिए अरणि-काष्ठ के टुकटे-टुकड़े कर डाले, मगर उसे उसमें कहीं आग नजर नहीं आई। आखिर दुसरे लकड़हारे लौट कर आये। उस मूर्ख लकड़हारे को अरणि के टुकड़े करते और उसमें भाग खोजते देखकर हंस पड़े। इसके बाद उन्होंने अरणि की लकड़ियों को आपस में रगड़ कर आग उत्पन्न की और रसोई बनाई। राजन्, तुम भी उस मूर्ख लकड़हारे सरीखे जान पड़ते हो। राजा-मनिराज ! मेरी समझ में तो कुछ आता नहीं है। कोई प्रत्यक्ष उदाहरण देकर मुझे समझाइए कि शरीर में जीव है और वह शरीर से भिन्न है! मुनि-ठीक, सामने खड़े हुए इस वृक्ष के पत्ते किसकी प्रेरणा से हिल रहे हैं? राजा-हवा से। मुनि-वह हवा कितनी बड़ी है और उसका रंग कैसा है? राजा-हवा दिखाई तो देती नहीं है, फिर आपके प्रश्न का उत्तर कैसे दिया जा सकता है? मनि-जब हवा दिखाई नहीं देती, तब कैसे जाना कि हवा है ? राजा-पत्तों के हिलने से । मनि-तो बस, शरीर के हिलने-डुलने आदि क्रियाओं से जीव का अस्तित्व भी स्वीकार कर लेना चाहिए। राजा-महाराज! आप कहते हैं कि सब जीव सरीखे हैं तो चौटी छोटी और
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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