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________________ २३४ ] ® जैन-तत्त्व प्रकाश (५) ज्ञानप्रवादपूर्व में पांच ज्ञानों का वर्णन था। इसमें बारह वत्यु और १७६००००० पद थे। (६) सत्यप्रवाद पूर्व में दस प्रकार के सत्य की प्ररूपणा थी। इनमें दो वत्थु और २५२०००००० पद थे। (७) आत्मप्रवाद पूर्व-इसमें आत्मा संबंधी विवेचन था। इसमें १६ वत्थु और ३०४००००० पद थे । (८) कर्मप्रवाद पूर्व में आठ कर्मों का वर्णन था । इस पूर्व में आठ वस्तु और ६०८००००० पद थे। (8) प्रत्याख्यानपूर्व में दस प्रत्याख्यान के ६ करोड़ भेदों का विवरण था। इस में २० वस्तु और १२१६००००० पद थे। (१०) विद्याप्रवाद पूर्व--- में रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि विद्याएँ थीं, विधियुक्त मंत्र आदि थे । इस पूर्व में १५ वस्तु और २५२०००००० पद थे। (११) कल्याणप्रवाद पूर्व में तप और संयम आदि से आत्मा का किस प्रकार कल्याण हो सकता है, इस विषय का वर्णन था। इस पूर्व में १२ वत्थु और ४८६४००००० पद थे। (१२) प्राणप्रवाद पूर्व में चार प्राण से लेकर दस प्राण वाले जीवों का वर्णन था । इसमें १३ वत्थु और ६७२७००००० पद थे। (१३) क्रियाविशाल पूर्व में साधु और श्रावक के आंचारगोचर का, तथा क्रियाओं का वर्णन था। इसमें ३० वत्थु और एक कोड़ाकोड़ी और एक करोड़ पद थे। (१४) लोकबिन्दुसार पूर्व--में सब अक्षरों के सन्निपात (उत्पत्तिसंयोग) का और सर्व लोक के सार-सार पदार्थों का निरूपण था। इसमें २५ वत्यु और कोड़ाकोड़ी तीन करोड़ तथा दस लाख पद थे । कहते हैं पहले पूर्व को लिखने में इतनी स्याही की आवश्यकता पड़ती थी कि उसमें एक हाथी डूब जाय । दूसरे पूर्व को लिखने में दो हाथी डबने
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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