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________________ ॐ उपाध्याय [२१६ [१] जो अल्प हँसने वाला हो [२] सदैव आत्मा को दमन करने वाला हो (३) निरभिमान हो (४) परमार्थ की गवेषणा करने वाला हो (५) पूर्ण रूप से अथवा आंशिक रूप से भी अपने संयम में दोष न लगाने वाला हो (६) जिह्वालोलुप न हो (७) क्षमाशील हो और (८) सत्यवादी हो। अविनीत के लक्षण जो शिष्य नीचे लिखे १४ दुगुणों में से सभी का या कुछ का धारक होता है, उसको यथातथ्य ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती । कदाचित् ज्ञान प्राप्त हो जाय तो वह यथातथ्य रूप में परिणत नहीं होता, बल्कि अपाय करने वाला हो जाता है । वे १४ दुर्गुण यह हैं:-- (१) बारम्बार क्रोध करना अथवा दीर्घ कषायी होना (२) निरर्थक कथा (निकम्मी बातें) करना। (३) सन्मित्र से द्वेष करना (४) अपने मित्र की भी रहस्यमय (गुप्त) बात प्रकट कर देना (५) बुद्धि का अभिमान करना (६) स्वयं अपराध करके दूसरे के मत्थे मढ़ देना (७) मित्र-हितैषी पर भी कुपित होना (८) असंबद्ध भाषा बोलना (8) द्रोह (वैर-विरोध) करना (१०) अहंकारी होना (११) जितेन्द्रिय न होना-इन्द्रियों को वश में न रखना (१२) जो वस्तु प्राप्त हुई हो उसका संविभाग (बराबर-बराबर पांती) न करना (१३) अप्रतीतिजनक कार्य करना और (१४) अज्ञानी होना । विनीत के लक्षण जो शिष्य निम्नलिखित १५ गुणों का धारक होता है, उसे सम्यग्झान आदि सद्गुणों की सहज रूप से प्राप्ति होती है । वह भविष्य में अपना और पर का उपकार करने वाला होता है । वे १५ गुण इस प्रकार हैं: (१) गति का चपल न हो अर्थात् विना प्रयोजन भटकता न फिरे । 'स्थान का चपल न हो अर्थात् स्थिर आसन से बैठे । भाषा का चपल न हो
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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